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19 मई, 2024

सब्र


सब्र कर, शुक्र कर, हिम्मत कर,
वक्त ही तो है, गुज़र ही जाएगा।

कामयाबी एक कशिश की सी है,
बे इखतियार एक रोज, खींच ही लाएगा।

जो आ ही गए हो  अंजुमन में अब, 
दो घड़ी ठहर के देखो, समा बदल ही जाएगा।

माना मुश्किल बड़ी है राहे फ़र्ज़ में ,
रस्सी का निशा मगर, पत्थर पर छोड़ ही जाएगा।

अच्छे दिन की आस लिए इंतजार खत्म हुआ,
बुरा वक्त है जो, एक रोज़ बदल ही जाएगा।

चाह बना ले  अगर तू राह भी मिल जाएगी,
मेहनत तो कर फल मिल ही  जाएगा।

- डॉ. तौक़ीर फातमा (अदा)

   कटनी, मध्य प्रदेश