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17 सितंबर, 2025

लोकतंत्र की रीढ़ में दरार या सुधार?


लोकतंत्र की मजबूती का पहला आधार सही मतदाता सूची है। यदि सूची ही त्रुटिपूर्ण हो तो निष्पक्ष चुनाव का सपना अधूरा रह जाएगा। बिहार में चुनाव आयोग ने जब विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) शुरू किया तो राजनीतिक हलकों में भूचाल आ गया। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया, लेकिन अदालतों और गहन चर्चा के बाद यह साफ हो गया कि मतदाता सूची का शुद्धीकरण चुनाव आयोग का दायित्व भी है और अधिकार भी।

इस प्रक्रिया से पहली बार आम मतदाताओं को समझ आया कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ना या सही कराना उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है, नेताओं या दलों के भरोसे यह संभव नहीं। दिलचस्प तथ्य यह रहा कि विपक्षी दलों के अधिकांश प्रतिवेदन नए नाम जोड़ने के बजाय पुराने नाम कटवाने से जुड़े थे। कांग्रेस ने दावा किया कि उसने 89 लाख प्रतिवेदन दिए, लेकिन लगभग सभी कटौती संबंधी निकले। नतीजा यह हुआ कि चुनाव आयोग ने करीब 65 लाख नाम सूची से हटाए, जिनमें मृत, स्थानांतरित और अनुत्तरित लोग शामिल थे। सवाल यह उठता है कि जब असल में सूची की सफाई हो रही थी, तो इसे लोकतंत्र का संकट क्यों बताया गया?

बिहार में हटाए गए नामों का वर्गीकरण
श्रेणी              संख्या (लगभग) 
मृत मतदाता - 22 लाख        
स्थानांतरित मतदाता - 18 लाख
अनुत्तरित / लापता - 25 लाख        
कुल - 65 लाख

एसआइआर की असली चुनौती अब पश्चिम बंगाल होगी। वहां घुसपैठ और प्रशासनिक राजनीतिकरण के कारण मतदाता सूची की शुद्धता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, बंगाल के सीमावर्ती जिलों - नॉर्थ 24 परगना, मालदा और मुर्शिदाबाद - में मतदाता वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत (1.5- 2%) से कहीं अधिक 3.5-4% तक रही है। यह संकेत देता है कि सूची में संदिग्ध नाम शामिल हो सकते हैं। यदि बंगाल में यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हो गई, तो पूरे देश में इसकी राह आसान होगी।

क्यों जरूरी है तकनीकी समाधान?
- देश में पंजीकृत मतदाता : लगभग 98 करोड़
- चुनाव आयोग का अनुमान : 6- 7% नाम डुप्लीकेट या गलत।
- हर साल औसतन 2 लाख लोग नागरिकता छोड़कर विदेश में बसते हैं।
- आधार, पासपोर्ट, पैन और नगर निगम डेटा से लिंकिंग होने पर डुप्लीकेट नाम स्वत : हटाए जा सकते हैं।

ध्यान देने योग्य है कि अभी पासपोर्ट कार्यालय और गृह मंत्रालय का डेटा स्वत : चुनाव आयोग को नहीं मिलता। यदि यह व्यवस्था हो जाए तो मृत और विदेश में बस चुके नागरिकों के नाम सूची से समय पर हट सकेंगे। इससे चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी और जनता का विश्वास बढ़ेगा।

आज आवश्यकता इस बात की है कि सत्ता और विपक्ष दोनों मिलकर इस मुहिम को सफल बनाएं। केवल भारतीय नागरिकों के नाम सूची में हों और अपडेशन की प्रक्रिया पूरी तरह स्वचालित हो - इसी में लोकतंत्र की सच्ची मजबूती निहित है। एसआइआर को विवाद का विषय मानने के बजाय इसे पारदर्शी और विश्वसनीय लोकतंत्र की दिशा में अवसर की तरह देखा जाना चाहिए।

- डॉ. प्रवीण डबली 
   वरिष्ठ पत्रकार 
   9422125656 / 7020343428