कहती ये कल - कल धारा है
नहीं चढ़ना उसके कंठ मुझे अब
हर एक पाकिस्तानी निर्मम,हत्यारा है।
बार - बार यही दोहराते हो
अब क्षमा - याचना नहीं चलेगी,
तपने लगा है भारतवर्ष अब
लहू के बदले लहू बहेगी।
जाति नहीं धर्म पूछा था
कब तक बंटते,खामोश रहोगे,
षड्यंत्रों में घिरकर मानवता की
उठाते कब तक लाश रहोगे।
जागो हिन्दुओं,हुंकार भरो अब
बलि वेदी तुम्हें बुलाती है
दुष्टों का सर करने कलम
अपने बरछे - तलवार पीजाती है।
कर दो बंद सभी सीमाएं
फेंकों निकाल हर पाकिस्तानी को
छाने दो नंगा नाच मृत्यु का
गलने दो दुश्मन की जवानी को।
छीन लिया सिंदूर मांग का
मां की कोख उजारी है
बिलखते बच्चें ये पूछ रहें
क्या अगली हमारी बारी है।
तुम दो आश्वाशन हे प्रधान जी
फिर अब न कभी ऐसा होगा
कर के तुम प्रत्यक्ष दिखला जाओ
दुश्मन का हाल 2016 जैसा होगा।
उसने विगुल युद्ध का फूंक दिया
सिर कफ़न बांध हम तैयार हैं
मिटा डालेंगे अब उसे भूगोल से
भारतभूमि ही जिसका जीवन आधार है।
- रजनी प्रभा
मुजफ्फरपुर, बिहार
rajni.prabha22@gmail.com