इन दिनों।
बडी चतुराई से चुरा लिया है इसने,
हमारा बडा ही कीमती समय।
अपना समय नहीं बचा
अब अपने लिए।
दूसरों को पढते है, सुनते है,
देखते है, पसंद करते है
अंगूठे लगाते है, टिप्पणी भी करते है,
पर अपने लिए ही,
अपने अंदर झांक कर देखने का
समय नहीं बचा, अपने लिए।
समय तो घर के लोगों के साथ,
बिल्कुल अपनों के साथ
बैठने उठने, हंसने बोलने
सुख दुःख बांटने का भी
बिल्कुल नहीं बचा है,
कैसा विचित्र है?
सब साथ बैठते भी है, तो चोर,
वह कीमती समय भी चुपके से
चुरा ले जाता है,
आकर हाथ पर बैठ जाता है,
ऐसा जकड़ लेता है कि,
एक साथ होकर भी
कोई किसी के साथ नही होता।
फिर बालक हों या बूढे,
जवान हों अथवा अधेड़।
इस चोर ने तो घरों का
घर पन ही चुरा लिया है।
कितनी अजीब बात है ना,
चोर चौबीसों घंटे हमारे साथ रहता है,
उठते बैठते,चलते फिरते हर कही,
ऐसे बांध कर रखता है कि,
हम निकल ही नही पाते
किसी तरह उसके चंगुल से,
जेब में ही बैठा रहता है,
पर शिकायत नही करते कभी हम,
किसी थाने में जाकर।
क्योंकि यह चोर अब हमें
अच्छा लगने लगा है,
हमारा सबकुछ चुराकर भी
हमारा प्रिय बन गया है।
और हम खुद से, अपनो से
दूर हो गये है।
- प्रभा मेहता
नागपुर, महाराष्ट्र
9423066820