कुठारन ते काटि काटि
खानदान से बिछुराय दई!
छेद ही छेद सहे मेरे हिय पै,
तब जाके कान्हा के कर न
ते अधरान पै कहुं धरी गई।
कष्ट सहे हम अनगिन जब
चख पाए अधरामृत ही तब
कटयो बांस है गयो मृत तब
मृत बांस बन्यो बंसुरिया जब
कान्हा ने बस एक फूंक में ही
लेओ सरसाय दए प्राण वामें।
सुर निकरे कान्हा की फूंक ते
मोहित तब सब जग ही भयो
गोप गोपीन की बात छांडो
ब्रज भूमि की भी बात छांडों
काऊ है या जग में ‘राव’ जे
जा धुन में ना बिलमाय गयो।
- राव शिवराज पाल सिंह
जयपुर (राजस्थान)