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बेटी


पिता नहीं था,

तो पता नहीं था,
जिंदगी ऐसे मुस्कुराती है,
बेटी से जिंदगी संवर जाती है,
अप्रत्याशित खुशी, जिंदगी जैसे सोना,
और इसमें सुगंध आ जाती है।

कभी नानी बन जाती है,
कभी दादी बन जाती है,
कभी अम्मा बन जाती है,
कभी टीचर बन जाती है।

नित नए अवतार में खुद को समाती है,
कभी मुझे लोरी सुनाती है,
कभी खुद सो जाती है,
कभी मुझे हिरो डैडु बुलाती है,
कभी मुझे चिढ़ाती है।

हर पल मुझे जीना सिखाती है,
मेरी माहिका जीवन को महकाती है,
मेरी जिंदगी में हर पल नया रंग भर जाती है।


- डॉ. सत्यम भास्कर 'भ्रमरपुरिया'
दिल्ली

माहिका मिश्रा के जन्मदिवस पर पिता द्वारा रचित कविता
काव्य 8286692544302954684
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