सोशल मीडिया पर गरीब कुम्हार को याद करने का दिवाली अनुष्ठान
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साल भर किसी को गरीब कुम्हार की याद तक नहीं आती कि वह कैसे साल भर जीवनयापन करता है। किसी को उनसे मिट्टी के बर्तन खरीदकर अपने रोजमर्रा की जिन्दगी में इस्तेमाल करने का साल भर विचार तक नहीं सूझता। पर दिवाली आते ही सब फटे कपड़ों में चाक चलाते कुम्हार की तस्वीर अपने-अपने सोशलमीडिया वाॅल पर शेयर करके खुद की तारीफ सी करते नजर आते हैं। भले उसमें बड़ी करुणा भरी पुकार लिखी हो कि 'इस दिवाली पर इन्हीं कुम्हारों से दिये आदि खरीदें', पर ध्यान से देखने पर उसके पीछे तस्वीर शेयर करने के मजे में सना चेहरा बड़ा ही साफ दिखता है।
इस दिवाली पर उनसे उनके उत्पाद खरीदकर उन्हें साल भर का रोजगार दे पायेंगे क्या? जरूरत है कि उन जैसे तमाम ऐसे शिल्पकारों और दूसरे ग्रामीण और अर्धशहरी कामगारों को साल भर रोज-रोज का रोजगार मिले। इसके लिये काम होना चाहिये, सोशलमीडिया से लेकर नेशनल मीडिया तक इसकी विशद चर्चा होनी चाहिये। वह भी रोज-रोज साल दर साल। ऐसे दुर्गतिशील व अतिवंचित बहुत बड़ी जनसंख्या के वर्ग को सामाजिक और आर्थिक नीतियों के निर्धारण की प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर रखना उनका आपराधिक अपमान है। और हम उनकी दुर्गति के चित्र सोशलमीडिया पर अपने मनोरंजन के लिये शेयर करके उनके इस अपमान को और भी क्रूरता से भर देते हैं। शेष हमारी इच्छा!
- प्रभाकर सिंह
प्रयागराज (उ. प्र.)