तीनों लोकों में 'गुरु' का समतुल्य कोई नहीं


गुरु शिष्य में निद्राधीन ईश्वर को जगाता है

नागपुर। आद्य शंकराचार्य ने गुरु की व्याख्या करते हुए कहा कि तीनों लोकों में गुरु का समतुल्य कोई नहीं है। सतगुरु के चरणों में जो आश्रय लेते हैं उन्हें गुरु अपने समान बना देता है। परमहंस योगानंद ने कहा है कि गुरु जागृत ईश्वर है, जो अपने शिष्य में निद्राधीन ईश्वर को जगाने का काम करता है।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर योगदा सत्संग सोसायटी ऑफ इंडिया के तत्वावधान में नागपुर केंद्र द्वारा सांस्कृतिक सभागृह खामला में आयोजित क्रियायोग के 'ध्यान एवं कीर्तन कार्यक्रम' में कीर्ति भाई राठौर, देवयानी राठौर, विनय गावंडे आदि ने अखंड मंडलाकारम, गुरु हमारे योगानंद, अनघड माटी, गुरु का ध्यान करो, गुरु नाम तू रटता जा, हो जनम दोबारा तो, मिले गुरु योगानंद, मधुर मधुर, परमहंस योगानंद शरणं जैसे ध्यानमग्न कर देने वाले भजनों की प्रस्तुति देकर उपस्थित सभी क्रियायोग साधकों को भावविभोर कर दिया।

भजनों के माध्यम से साधकों को बताया गया कि गुरु मित्र होता है, परमशक्ति होता है, प्रेरक होता है। गुरु के मार्गदर्शन से ही शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति को गति प्राप्त होती है। 

साधक सत्य का साक्षात्कार करने के लिए लालायित हो उठता है। उसके अंतर में विद्यमान आत्मा उसे सोचने के लिए मजबूर करती है। इस अवसर अनेक साधकों को ध्यान की गहन अनुभूति भी हुई।

संचालन डॉ. अमिशी अरोरा ने किया। साधक अमर रामानी ने आगामी 20 से 22 अक्टूबर तक माहेश्वरी भवन, सीताबर्डी नागपुर में आयोजित 'साधना संगम' कार्यक्रम में सभी क्रियायोग साधकों से उपस्थिति की अपील की। 

कार्यक्रम की सफलता के लिए दीपक अरोरा, एस.के. दास, सुजाता देशमुख, रवि रामानी, चंद्रकांत सुके, अनिल दाणी, सारिका पाटने, रानी बूटे, संदीप चांदेकर, अनंत वेखंडे आदि ने प्रयास किया। जानकारी साधक अजय पांडे ने दी।
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