विदेशी मूल के हिंदी प्रेमी : ‘चुनौतियाँ और संभावनाएं’ विषय पर व्याख्यान, देश-विदेश के वक्ताओं ने बताया यह राज
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नागपुर। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के संयुक्त तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा विश्व हिंदी दिवस के मद्देनजर 'विदेशी मूल के हिंदी प्रेमियों की चुनौतियों और संभावनाओं' पर विशेष रविवारीय व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के एमिरेट्स प्रोफेसर और ‘पद्मश्री’ से सम्मानित डॉ. तोमियो मिजोकामी ने नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ कहा कि बहुभाषी देश भारत में भाषाओं के प्रति बहुत उदारता और उदात्तता है
सातवें दशक में भारत में हिंदी पढ़ चुके दीर्घानुभवी हिंदी-जापानी विद्वान और पंजाबी, बंगला, संस्कृत और अंग्रेज़ी आदि के ज्ञाता वयोवृद्ध प्रो. मिजोकामी की अनुभवजन्यता थी कि जापान में हिंदी विद्यार्थियों की संख्या स्थिर है। जापानी-हिंदी की अनेक पुस्तकों के लेखक और नाटक के माध्यम से हिंदी सिखाने की उर्वर पद्धति के प्रणेता डॉ. मिजोकामी ने सभी भाषाओं का समादर करते हुए हिंदी के विश्व भाषा बनाने की पुरजोर अपील की। उन्होंने महाशक्ति के रूप में उभरते भारत की भाषा हिंदी के शोध की दिशा में नए आयाम बताए। इस अवसर पर सभी महाद्वीपों के अनेक बहुभाषी विद्वान विदुषी, सुधी श्रोता और शोध छात्र उपस्थित होकर ज्ञानार्जन किए।
डेनमार्क के कोपेन्हेगेन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. एल्मेर जोसेफ रेनर ने कहा कि उनके देश में कृत्रिम बुद्धिमता की तकनीकी दक्षता और अनुवाद की उपलब्धता के कारण हिंदी या द्वितीय भाषा सीखने वालों की संख्या कोरना संकट के बाद कम हुई है। हंगरी के एलतै विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रो. मारिया नेज्येशी का मत था कि हम केवल दूसरी भाषा ही नहीं सीखते बल्कि दरवाजे की चाबी सदृश पूरी संस्कृति को भी आत्मसात करते हैं। चालीस वर्षों से हिंदी से जुड़ी प्रो. मारिया का दृढ़ मंतव्य था कि हिंदी के लिए अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और परीक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
हंगरी में सकारात्मक माहौल है। जर्मनी व रूस के हेमबर्ग और पीट्स्बर्ग की प्रो. डॉ. तत्याना ओरान्स्कया का अनुभव था कि विदेशी मूल के विद्यार्थियों को हिंदी के पठन-पाठन, लेखन-बोधन और विशेष रूप से उच्चारण में कठिनाई आना स्वाभाविक है। निःसंदेह हिंदी लाभदायक है जिसका रोजगार से भी संबंध है। कुछ चुनौतियाँ पहले जैसी ही हैं। हमें भारत के कंसुलेट से भी अपेक्षित सहयोग मिलता है।
मास्को राजकीय विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर ल्यूदमिला खोखोलोवा ने हिंदी-रूसी के इतिहास को संक्षेप में रखते हुए कहा कि रूस में हिंदी में रोजगार के अपार संभावनाएँ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदी भाषणों की प्रशंसा करते हुए उन्होने कहा कि हिन्दी के बिना काम चलने वाला नहीं है। स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के प्रो. हाइन्स वरनर वेसलर का स्पष्ट मत था कि विश्व में महाशक्ति के रूप में उभरते भारत की भाषा हिंदी को हिम्मत के साथ लागू करने की निहायत जरूरत है। हिंदी में रोजगार की अपार संभावनाएँ निहित हैं। उज्बेकिस्तान से जुड़ी प्रो. उलफत मुहियोबा ने अवगत कराया कि उनके राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भाषा संबंधी विशेष पहल और प्रोत्साहन से भाषा शिक्षण में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।हिन्दी के विद्यार्थी भी बढ़ रहे हैं।
कार्यक्रम में प्रो जगन्नाथन ने भारत में नई भाषा नीति का सुझाव दिया तथा डॉ. नारायण कुमार ने भारत के विदेश स्थित सभी दूतावासों में हिंदी से संबंधित नए पदों के सृजन और विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी पठन पाठन की नई व्यवस्था की निहायत जरूरत बताई। चैट बॉक्स में रखे गए प्रश्नों के बेबाक विश्लेषण सहित उत्तर दिये गए। प्रो नवीन चंद लोहानी ने हिंदी के चहुंमुखी विकास का सुझाव दिया।
कार्यक्रम में सान्निध्य प्रदान करते हुए वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने सभी को विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने विश्व हिंदी दिवस की सरकारी शुरुआत हेतु अपने आवास पर डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव के साथ हुई बैठक और प्रारूपण के बाद 2006 से आरंभ का जिक्र किया। उनके द्वारा विदेशी भाषा तथा द्वीतीय/तृतीय भाषा के रूप में हिन्दी पढ़ाने तथा भाषा कौशल बढ़ाने की वकालत की। जोशी ने बताया कि वर्ष 2023 में भारोपीय हिन्दी महोत्सव लंदन और विश्व रंग भोपाल के कार्यक्रम के बाद इस दिशा में प्रगति हो रही है। उन्होने सभी वक्ताओं की दीर्घकालिक साधना की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
भोपाल से साहित्यकार एवं इस कार्यक्रम के संयोजक डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा ठोस पृष्ठभूमि के साथ विषय प्रवर्तन और आत्मीयता पूर्वक स्वागत किया गया। पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. शिव कुमार सिंह द्वारा यथोचित भूमिका के साथ शालीनता, विद्वता और बड़े इत्मीनान से संतुलित संचालन किया गया। उन्होंने बारी-बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सहज भाव से सादर आमंत्रित किया। कार्यक्रम में यू के की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी, श्रीलंका से प्रो अतिला कोतलावल तथा भारत से डॉ आलोक गुप्ता, विजय मल्होत्रा, बरुन कुमार, लक्ष्मण डेहरिया, गंगाधर वानोडे, विजय नगरकर, रियाज अंसारी, राजेश गौतम, सिमरन मीना, सरिता दीक्षित, सुमेधा, रजनी, डालचंद, दिवाकर, ऋषि कुमार, विनय शील चतुर्वेदी, स्वयंवदा एवं जितेंद्र चौधरी आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग का दायित्व कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे। शोधार्थियों का समन्वय प्रो. विवेक द्वारा किया गया।
समूचा कार्यक्रम विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा वातायन संस्था के सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में डॉ जयशंकर यादव द्वारा आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, सम्माननीय वक्ताओं, संयोजकों, समन्वयकों, संचालकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं सुधी श्रोताओं आदि को नामोल्लेख सहित धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समूचा कार्यक्रम सौहार्द पूर्ण माहौल में सानंद सम्पन्न हुआ।