शारदा
https://www.zeromilepress.com/2024/03/blog-post_35.html?m=0
शारदा एक सुंदर, पढ़ी लिखी और शांत स्वभाव की गुणी लड़की हैं । है तो शारदा आगेके जमाने की लड़की, चेकिन बचपन में शारदा के माँ ने जो संस्कार दिये हैं। वह भूली नहीं हैं और अपने घर में उसी सलीकेसे रहती हैं। शारदा की माँ गजरने के बाद भी, वह माँ के पद्चन्होपर ही चलती हैं। रोज भगवान की पुजा करना, भगवान को भोग लगाकर ही खुद खाना वरगेरे।
शारदा, शारदा, विद्या चरण ने अपनी सात सालकी बेटी को आवाज दी स्कूल का टाइम हो गया तैयार हुई की नही, हाँ बाबा भगवान को भोग लगाकर अभी आई. विद्या चरण अपने मन ही मन में बोले इस लडकी की तो पूजा ही खतम होती नही, भगवान बिना माँ की बच्ची का तुम्ही सहारा हो तुम्हारे शिवाय हम दोनो का कौन है। फिरसे विद्याचरण ने आवाज दी शारदा जल्दी चल तुझे स्कृल छोडकर मुझे हवेली भी तो जाना है। विद्याचरण बेटी को स्कुल छोडकर हवेली गये जहाँ सेठ लक्ष्मीकांत अपने मूनीम विद्याचरण की राह देख रहे थे।
विद्याचरण क्या आज भी तुम्हारी बेटी की पूुजा में देर हो गयी। मूनीमजी ने बोला क्या करू मालिक बिना माँ की बच्ची है। ज्यादा गुस्सा भी नहीं कर सकता, वैसे तो मेरी बेटी इतनी समझदार है की कुछ बोलने की नौबत ही नहीं आती। मालिक बाबा को स्कूल छोड दू क्या, लक्ष्मीकांत बोले राज तो पहले ही चला गया। सेठ लक्ष्मीकांतजी का इकलोता बेटा राज भी बिना माँ का था, शारदा, राज और सेठजी के दोस्त की बेटी महिमा एकही स्कृल में एक ही क्लास में पढ़ते थे।
एक लाईन में लडके और दुसरे लाईन में लडकोयों बेठती थी। राज और शारदा सामने की लाईन में पहिले नंबर पर ही बेठते थे। शारदा और राज की गहरी दोस्ती थी दोनो का पटता भी अच्छा था। महीमा बीचमें आती चेकिन राज को उसका साथ अच्छा नहीं लगता।
शारदा बहुत सुंदर और पढ़ने में बहुत तेज थी। शारदा की बुआ शारदा की देखभाल करतो थी। राज को भाभी के पराठे बहुत अच्छे लगते थे इसलिए शारदा बुआकी मदत करके टिफिन में हरदम गोभी के पराठे लाती थी। ऐसे ही दिन निकलते गये और शारदा अब सोला साल की हो गया। इस दरम्यान दोनो शारदा और राज एक दसरे को बहुत प्यार करते थे। थोडों देर अगर शारदा को स्कुल आने में देर लग जाती तो राज बेचैन हो जाता शारदा होने के तुरंत बाद शारदा की माँ बहुत बिमार हुई थी। तब शिवचरण ने सेठ लक्ष्मीकांत से कुछ पैसे उधार लिए थे। चेकिन इतने सालो में दे नहीं पाये। बेटी बड़ी हो रही थी इसलीए उसका खर्चा भी बढ़ रहा था। शिवचरण शारदा को अमीरो जैसे ही रखता था बेटी की हर इच्छा पूरी करता था।
राज और शारदा की मुलाकाते बढ़ती गई महिमा राज को प्यार करती थी। चाकन राज को वह पसंद नहीं थी। महिमा अमिरकी बेटी थी इसलिए बहुत घमंड था उसे, किसीसे सिधे मुँह बात नहीं करती थी। स्कृल से तिनों राज, शारदा और महिमा कॉलेज में आ गये तिनोने अपना ग्रेजूर्वेशन पूरा कर लिया। राज और शारदा कभी कभी ग्राडंन में या शारदा के घर में मिलते थे। सेठ लक्ष्मीकांत के नजर में कुछ कुछ आरहा था। इसलिए सेठजी ने अपने बेटे को परदेश पढ़ने भेजा राज वादा करके गया की पढ़ाई पूरी करके आतेही शारदा से शादी के बारे में अपने पिता से बात करेगा। शारदा ने भी वादा किया था की वह राज का इंतजार करेगी। चेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। कुछ दिनो बाद शारदा के पिता बिमार हो गये।
उन्हे अपनी बेटी की चिन्ता सताने लगी कोी मेरे बाद मेरी बेटी का क्या होगा। अभी तक सेठजी का कर्जा भी मैने दिया नहीं। मेरी बेटी कहाँ से देगी अगर मुझे कुछ हो गया तो, जब सेठजी को शिवचरण के तबीयत का पता चला तो सेठ लक्ष्मीकांतं अपने मुनीम से मिलने आये उन्हे देखकर शिवचरण फूट फुट कर रोने लगा। इसी हालत में शिवचरण ने सेठजी को अपनी बेटी शारदा से शादी करने के लिए कहाँ शिवचरण ने कहाँ सेठजी मेरे पास ज्यादा टाईम नहीं हैं। मेरे आँखो के सामने शारदा को दुल्हन के रूप में देखना चाहता हूँ। मैने अपनी बेटी को बहत अच्छी तरह पाला हैं। आपके घर में शारदा के जीवन का मैने जो सपना देखा वह पूरा हो सकता हैं। सेठजी मेरे सामने जल्दी से शादी कर लिजीएं और सेठ लक्ष्मीकांत और शारदा की शादी हो गई। शारदा ने अपने पिता के आज्ञा का पालन करके उनकी आखरी इच्छा पूरी की, शारदा सेठजी के घर को अच्छे से सम्भालनेमें लग गई। क्योंकी काफी सालोसे उनके घर में किसी औरत का साम्राराज्य नहीं था। उन्होंने राज की माँ के मौत के बाद दुसरी शारदी नहीं की, वह इतने अमीर थे। जवान थे कोई भी लड़की आसानी से उनसे शादी कर सकती थी चेकिन राज के लिए सोतिली माँ लाना उचित नहीं समझा, अब तो राज बहुत बडा हो गया था। उन्होने दुसरा शादीं के बारे में बताया नहीं। उन्हें लगा परदेश में उसकी पढ़ाई पर असर पढ़ेगा शारदा के पिता इस दुनिया से जा चुके थे। बुआ तो पहले ही चली गई थी इसलिए शिवचरण को बेटी की ज्यादा फिकर हो रही थी।
आज सेठजी घरमें बहत चहल पहल थी। पूरा घर संजाया जा रहा था। माना लग रहा था सेठजी के घरमें दिवाली मना रहे हैं। आखीर राज परदेश से अपनी पढ़ाई पूरी करके आ गया। जैसे घर में कदम रखा शारदा आरती लेकर राज का स्वागत करने सामने आयों। शारदा को देखकर राज बहत खुश था चेकिन अपने घरमें शारदा को देखकर सोचने लग गया। इतने में शारदा ने राज को आवाज दी चिरंजीव अब अन्दर आ जावो। चिरंजीव शारदा के मुहूँ से अपने लिए सुनकर उसे जोर का धक्का लगा। राज ने शारदा का हाथ पकडकर एक कोने में ले गया और पुछने लगा यह क्या नाटक हैं तुम इस तरह से पेश क्यों आरही हो, तब शारदा ने बोला बेटे अपनी माौँ से ठीक से पेश आओ, यह कोई नाटक नहीं हैं अब में तुम्हारी माँ हुँ अपने कमरे में जाओ और तयार होकर खाना खाने आजाओ राज तैयार होकर अपने कमरे से निचे आया चेकिन राज ने खाना नहीं खाया, राज बाहर चला गया। रात की जब वह लोटा तो बहुत नशे में था। शारदा राज का बहुत इंतजार कर रहं थी। शारदा ने भी खाना नहीं खाया था। शारदा नोकर को बोलकर की किचन में थोडा देखलो मुझे भी भूख नहीं हैं। सुबह उठने के बाद फिरसे राज तैयार होकर बिना कुछ खाये बाहर चला गया।
यही सिलसिला सुरू हुआ रोज, शारदा बहत परेशान थी राज को समाझाने की उसने काफी कोशीश की, आज जब राज घर आया रातको जब शारदा राज के सामने आकर खड़ी हों गई और दाटने लगी। राज कुछ उलटा जबाब देने लगा तो शारदाने राज के गाल पर एक जोर से थप्पड मारा और कहाँ की यह क्या चला रखा हैं। कुछ घरवालों की तरफ देखों अपने पिता के प्रती अपना कर्तव्य समझो तुम्हे इस हालत में देखकर वह कितना परेशान हैं। जिवन अभी खतम नहीं हुआ, अपना कारोबार सम्भालने में अपने पिता की मदत करो, राज यह सब देखता ही रह गया। और शर्म से गर्दन निची करके अपने कमरे में चला गया। दुसरे दिन से टाईम से तैयार होकर अपने पिता से पहले ऑफीस पहँच गया।
उस दिन से रोज़ राज ध्यान लगाकर अपना कारोबार देखने में अपने पिता की मदत करने लगा। शराब को उस दिन के बाद छआ तक नहीं। ऐसे ही कुछ दिन बित गये तब शारदाने सेठ लक्ष्मीकांत से राज के शादी के बारे में बात की, महीमा आपके दोस्त की बेटी राज के लिए अच्छी रहेगी। राज को इसके बारे में पुछने पर उसने जबाब दिया, जो आप सोचोगे वह मेरे लिए अच्छा ही होगा इसलिए मेरी मंजूरी हैं। में शादी के लिए तैयार हूँ महीमा के साथ राज की शादी हो गई। चेकिन महिमा का स्वभाव तो घमंडी टाईप का था। इसलिए महिमा आये दीन कुछ ना कुछ बात लेकर राज से या शारदा से झगडा ही करती रहती थी। शादी के बाद राज को ज्यादा खुश रहना चाहिये तो राज बहुतही दुःखी रहने लेंगा। फिर से शराब पिना राज ने शुरु किया। घर में भी देर से आता जब राज को पुछ्ा गया की रोज देरसे क्यों आते हो, तो राज का जबाब था घर में शांती ही कहाँ हैं । में तो शांती की तलाश में घुमता रहता हैँ।
जीस दिन घर में शांती मिल जायेगी तब जल्दी आवँगा, राज ने वेश्या के कोठेपर भी जाना शुरू किया यह सब उसके पिता देखकर बहुत दुखी होते थे। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, उन्हें लगा राज की जिन्दगी उन्होंने ही तबाह की क्योंकी वह जानते थे राज और शारदा प्यार करते हैं। यह दुःख अन्दर ही अन्दर सेठजी को खोकला करते जा रहा था। शारदा भी दुःखी रहती थी। क्योंकी महिमा शारदा को भी कुछ ना कुछ अपशब्द बोलकर अपमानीत करती थी। यह सब सेठजी से देखा नही गया और उन्हें आर्ट अर्टेक आकर वह भगवान के पास चले गये। राज तो नशे में रहता था। इसलिए शारदा प्रॉप्टी का काम देखने लगी। इधर महिमा पेटसे थी। शारदा उसे खुश रखने की बहुत कोशीश करती थी चेकिन महिमा का स्वभाव बदल ही नहीं रहा था।
एक दिन ऑफीस जाते जाते शारदा के गाडी का अंक्सीरडेंट हो गया। और शारदा इस अक्सीडेंट में मारी गयी। महिमा उस समय हॉस्पीटल में थी महिमा ने एक सुंदर बच्ची को जन्म दिया। उस बच्ची का का नाम राज ने शारदाही रखा। अब शारदा ही राज के जिने का सहारा बन गई राज ही शारदा का ज्यादा ध्यान रखता था। क्योंकी महिमा तो अपने दोस्तों में लगी रहती थी। राज ने प्रापर्टी भी अच्छे स्भाली, बच्ची बडी हो रही थी और हुबेहुब शारदा के जैसे सब कुछ करती थी। एक दिन राज ने आवाज दी शारदा स्कुल के लिए देर हो रही तो अन्दर से बेटी ने आवाज भगवान को भोग लगाकर आतो हूँ वैस पुजा पाठ रहन सहन सब शारदा के समान ही था इस नई शारदा का, अब तो महिमा को भी अपनी बेटी को देखकर प्यार आने लगा। सुबह जब राज और महिमा बैठे थे तो छोटी शारदा पुजा करके आरती की थाली लेकर अपने माँ बाप के पास आई और दोनो को टिका लगाकर आरती दी और बोली पापा अम्मा आज में बहुत खुश हुँ आप दोनो को साथ देखकर, अपनी नव साल की बच्ची के मुँह से ऐसे शब्द खुलाकर राज और महिमा बहुत खूश हुये।
- मालती माणिक
नागपुर (महाराष्ट्र)