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छत्तीसगढ़ के अनाम स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान पर राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी


नागपुर/रायपुर। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश की छत्तीसगढ़ राज्य इकाई के तत्वावधान में 'छत्तीसगढ़ के अनाम स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान' विषय पर राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता कर रहे डॉ.सुधीर शर्मा भाषाविद् ,सहायक प्राध्यापक, कल्याण महाविद्यालय भिलाई, छत्तीसगढ़ ने कहा कि देश जब पराधीनता के पिंजरे से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा था और किसी भी तरह बस अंग्रेज़ी हुकूमत को बाहर खदेड़ने पर आमादा था तब हरेक कोने से विद्रोह के स्वर फूट रहे थे। स्वतंत्रता के अभिलाषी मुक्ति का संकल्प लेकर मोर्चा संभाल रहे थे। आन के समक्ष जान की फिक्र उन्हें कतई नहीं थी। ऐसा ही माहौल छत्तीसगढ़ में भी था। 

छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों ने अंग्रेज़ों के बहुत अत्याचार झेले, अनगिनत बार जेल में ठूंसे गए, पर उन्होंने हार नहीं मानी और निरंतर प्रयास करते रहे। छत्तीसगढ़ में ही साठ से अधिक महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। रोहिणी परगनिहा तो मात्र 12 वर्ष की थी, तब उन्हें चार माह की सजा हुई थी। साहित्यकार, पत्रकार, वकील और व्यापारी के साथ किसान मजदूर भी शामिल थे। आज वे भूले बिसरे हो गये हैं।

मुख्य वक्ता एम.एल.नत्थानी पूर्व सहायक आयुक्त जीएसटी डिपार्मेंट, छत्तीसगढ़ शासन एवं प्राध्यापक पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने कहा कि तथ्यात्मक अध्ययन के आधार पर सुसंगत विश्लेषण प्रस्तुत किए। छत्तीसगढ़ के वनवासी बाहुल्य क्षेत्र के जनजातीय समुदाय की साहसी एवं वीर स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य और संघर्ष की लगभग 200 वर्षों की गाथा को विभिन्न कालखंडों के अनवरत आंदोलन को रेखांकित किए हैं। भारत में 1857 की क्रांति को पहली क्रांति माना जाता है, जबकि छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय के साहसी लोगों ने सदैव "जल, जंगल, जमीन" के अपने मूलभूत अधिकारों के लिए सामूहिक रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध जन आंदोलन और संघर्ष किया है। 

अतिथि के रूप में डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, सचिव विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान , प्रयागराज उपस्थित रहे। डॉ. विजया लक्ष्मी रामटेके, अध्यक्ष, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज ने कहा कि छत्तीसगढ़ आदिवासियों का क्षेत्र है। ठाकुर प्यारेलाल एवं अन्य क्रांतिकारियों को भुलाया नहीं जा सकता। प्रस्तावना में डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर छत्तीसगढ़ प्रभारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के नाम स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान दिया हालांकि उनके नाम को अक्सर गुमनामी में रखा गया है। इन सेनानियों में से कई आदिवासी थे जिन्होंने भूमकाल विद्रोह और अन्य स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। जिसमें शहीद वीर नारायण सिंह 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 

सरस्वती वंदना श्रीमती जानकी साव, रायगढ़ के द्वारा दिया गया। स्वागत उद्बोधन डॉ सरस्वती वर्मा महासमुंद के द्वारा किया गया। आभार खिलेश्वर साहू के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के आयोजक एवं संयोजक, संचालन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, छत्तीसगढ़ प्रभारी रही। आभासी पटल पर विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के उपाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश त्रिपाठी, श्रीमती पुष्पा शैली प्रयागराज प्रभारी, डॉ रश्मि लहर, डॉ सीमारानी प्रधान, डॉ अवंतिका शर्मा, डॉ सीमा वर्मा प्रयागराज, श्रीमती उपमाआर्य, श्री देशबंधु आर्य सहित अनेक साहित्यकार, शोधार्थी आभासी पटल पर उपस्थित रहे।
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