मुक्ति
https://www.zeromilepress.com/2025/05/blog-post_316.html?m=0
'बेटा रात बहुत हो चुकी है।इस वक्त इतनी रात में अकेले कहां जा रहे हो ?"मां के सवाल पर सीआईडी ब्रांच के प्रमुख इंस्पेक्टर कमल ने कहा-"मां, काॅल आया है,कोई मुसीबत में होगा।हम पुलिस वालों का तो काम यही है कि मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करना।तु चिंता न कर. मैं जल्दी आ जाऊंगा"कहकर कमल पुलिस जीप से बताये हुए नॅशनल हाय वे की ओर जाने लगा.चारो ओर घना अंधेरा था गाड़ी चलाते हुए लगभग घंटा होने को आ रहा था कि अचानक दायी बाजूकी ओर कमल को एक सफेद साड़ी में एक लड़की रूकने का इशारा करते हुए दिखाई दी.कमल एकदम से सहम सा गया. पर अनदेखा करते हुए आगे बढ़ने लगा.इतने में उसकी जीप अचानक रूक सी गई. ब्रेक लगा कर जीप से उतरकर अंधेरे में वह चारों ओर देखने लगा.पर उसे कुछ दिखाई न दिया.वापस गाड़ी चलाने लगा.थोड़ी दूर जाने पर उसे महसूस हुआ कि जीप में कोई है.जब वह घबराकर बॅक व्ह्यू मिरर में देखा तो उसके होश उड़ गए.उसे लगा कोई पीछे बैठा हुआ है.एकदम से जीप रोक दी.डरते हुए पूछा-"कौन हो तुम, अन्दर कैसे आ गई?."अंदर बैठ़ी हुई लड़की ने धीरे से कहा- "डरो मत, फोन मैंने ही किया था."
"मुझ से क्या काम था?"
मुझे तुम जैसे कर्तव्य निष्ठ पुलिस वाले की जरूरत थी ,जो मेरी मदद कर सके, और कई दिनों के इंतेजार के बाद तुम मिले हो."
आखिर तुम्हें मुझ से ऐसा क्या काम है?"
"यहां से बायी तरफ एक मैल के फ़ासले पर एक झील है, झील के पास बरगद का एक विशाल पेड़ है".
"तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?"
"तुम्हें मेरे साथ वहाँ चलना पड़ेगा."
कमल न चाहते हुए भी अपनी बड़ी टाच॔ की सहायता से उस लड़की के पीछे पीछे चलने लगा.बरगद के पेड़ के पास रूक कर उस लड़की ने अपनी उंगुली के इशारे से उस जगह को बताने लगी.जिसे देखकर कमल घबराहट के मारे पसीने से तरबदर हो उठा.उसकी बोलती बंद हो गई.
उस लड़की ने कहा-" घबराओ मत.यह मेरी समाधि है."
"क..क..क्या कहा, यह तुम्हारी स..समाधि है.मतलब तुम....?"
"हां मैं इस शरीर की आत्मा हूँ.मेरा नाम माया था.एक वष॔ पूव॔ की बात है.मेरे प्रेमी चंदर ने मुझे धोके से यहां लाकर अपने दो मित्रों सहित मेरी आबरू लूटकर मेरी हत्या करने के बाद ,मुझे यहां दफना दिया और भाग गये."कमल संभलकर पूछा-"तुम चाहती क्या हो?"
"मुझे मुक्ति और उन्हें सज़ा मिले "
"सबूत क्या है?"
"छिना झपटी में चंदर के गले का लाॅकेट मेरे हाथ में आ गया था जो अभी भी मेरे दागिने हाथ की मुठ्ठी में सुरक्षित है.सुबह होने को आ चुकी थी.इंस्पेक्टर कमल ने पुलिस की मदद से समाधि को खोला गया.अपनी टीम के माध्यम से तथा माया की आपबीती से और प्राप्त लाॅकेट के सबूत के आधार पर चंदर और उसके मित्रो को हिरासत में लेकर भारतीय न्याय संस्था के तहत अपहरण ,बलात्कार व मड॔र का मुकदमा चलाया गया. तीनों को फांसी की सज़ा लगभग तय मानी गयी.अदालत से निकलते हुए इंस्पेक्टर कमल ने दूर एक झाड़ के नीचे खड़ी माया को देखा तो उसके पास गया."मै आपकी आभारी हूँ.आपने मुझे मुक्ति दिला दिया".इतना कहकर वह ग़ायब हो गयी. जब इंस्पेक्टर कमल वहां से जाने लगा तो उसके दिलो दिमाग में एक सवाल उठने लगा-"क्या' क़ानून सिफ॔ जीवितों के लिए ही होता है?"
- मोहम्मद जिलानी,
चंद्रपुर, महाराष्ट्र