विरोधवाद की विजय गाथा
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व्यंग्य
भारतीय लोकतंत्र में जैसे ही सरकार कोई फैसला करती है, विपक्ष की आत्मा चीख उठती है - यह तानाशाही है! चाहे सरकार कहे कि सबको मुफ्त ऑक्सीजन मिलेगी, विपक्ष कहेगा - यह ऑक्सीजन उद्योग का अपमान है! अगर सरकार कहे कि अब परीक्षा ऑनलाइन होगी, विपक्ष बोलेगा - यह छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर हमला है! मतलब सरकार कुछ भी करे, विपक्ष का रिमोट कंट्रोल ‘ना’ पर फिक्स है।
हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमला हुआ। सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई.. सब एक सुर में सरकार के साथ होने की बात कह गए.. बाहर निकलकर याद आया.. अरे ये क्या हमने विरोध नहीं किया। बस फिर क्या था सरकार की नाकामी.. सिंधु समझौता कैसे तोड़ सकते.. प्रधानमंत्री की सिर कटी प्रतीकात्मक चित्र से विरोध.. सरकार के लोगो का आतंकवादी संबंध तक बताने में विरोधियों ने देर नहीं की। इन्हें यह भी नहीं पता कि जब देश की सुरक्षा का सवाल हो तो सरकार से बंद द्वार में सवाल पूछने चाहिए.. इनसे तो अच्छे हमारे जनाब ओवैसी निकले.. जो खुले मंच से पाकिस्तान की घिनौनी करतूत का खुल कर समाचार ले रहे है। लेकिन विरोधी इसमें में अपने वोट साधने का प्रयास कर रहे है।
आजकल विपक्ष का असली राजनीतिक शस्त्र ‘तथ्य’ नहीं, बल्कि 'भावना' है। सरकार अगर रोड बनवाए, तो कहा जाएगा - इससे पेड़ों को ठेस पहुंचेगी। अगर पेड़ लगाए जाएं, तो ये बोले - सरकार जमीन हड़पना चाहती है!” यहाँ तक कि अगर सरकार मुफ्त में वाई-फाई दे दे, तो कहा जाएगा - जनता की जासूसी होगी!
विपक्ष के पास अब एक स्पेशल अलार्म घड़ी है - जैसे ही प्रधानमंत्री कुछ बोलते हैं, अलार्म बजता है और विपक्ष तुरंत ट्विटर पर सक्रिय हो जाता है। कुछ भी हो, 'पहले विरोध करो, फिर सोचो' कि विरोध किस बात का है।
एक वरिष्ठ नेता ने तो कहा - हम सरकार की तारीफ नहीं कर सकते, वरना जनता को शक हो जाएगा कि हम सच्चे विपक्ष हैं या पार्ट टाइम सहयोगी!
अब तो विरोध करने की कला इतनी विकसित हो चुकी है कि विपक्ष के नेता पहले विरोध की प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते हैं, फिर पूछते हैं - अरे फैसला क्या आया था?
कुछ विपक्षी पार्टियों ने तो 'विरोध प्रशिक्षण केंद्र' भी खोल लिए हैं, जहाँ कार्यकर्ताओं को सिखाया जाता है:
- सरकार के बयान को तोड़- मरोड़कर कैसे वायरल करें
- सड़क पर बैठने का सही कोण क्या हो?
- कैमरे के सामने आंसू कैसे निकालें?
अंत में, विपक्ष की एक ही मांग है - सरकार फैसला तब करे, जब हम तैयार हों विरोध करने के लिए!
- डॉ. प्रवीण डबली, वरिष्ठ पत्रकार
नागपुर, महाराष्ट्र