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हिन्दी महिला समिति ने विश्व परिवार दिवस पर 'वसुधैव कुटुंबकम्'


नागपुर। जानी- मानी संस्था 'हिन्दी महिला समिति' ने रति चौबे की अध्यक्षता में 'विश्व परिवार दिवस' के उपलक्ष्य में 'वसुधैव कुटुंबकम्' एक अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें सभी बहनों ने बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया और तो और उन्होंने अपने बेशकीमती विचार भी व्यक्त किए। 
- निशा चतुर्वेदी के शब्दों में विश्व में शांति हेतु बढ़े चलें कदम। सब कहें झूम झूम वसुंधरा को चूम चूम 'वसुधैव कुटुम्बकम् वसुधैव कुटुम्बकम्'।

- सुषमा अग्रवाल ने कहा कि जहां आपसी प्रेम होता है आपसी सद्भाव, जहां सबकी इच्छाओं का हो सम्मान, जहां खड़कते है चार बरतन, फिर सब मिल- बैठ करें मीठी बातें, वो होता है परिवार। 
- कविता परिहार कहतीं हैं कि वसुधैव कुटुंबकम्  एक परिवार होता है, जिंदगी का सुदृढ़ आधार होता है जिससे आती, जीवन में बहार। , रिश्ते निभाना भी यहीं से सीखता है इंसान। एक सशक्त पहचान, मिलती है सभी को, परिवार ही लगाता सदा सबका बेड़ा पार। 

- उपाध्यक्षा : रेखा पाण्डेय के शब्दों में वसुधैव कुटुंबकम्  का अर्थ पूरा विश्व एक कुटुम्ब है। मेरा कुटुम्ब मेरा परिवार एक प्यारा सा छोटा सा सुंदर सा घर उसमें मैं और मेरा परिवार, साथ में रहने वाले बड़े भाई बहन माता पिता और चाचा, बुआ। आस पड़ोस के लोगों को भी अपने कुटुम्ब में शामिल करना उन्हे भी अपना कुटुम्ब की तरह ही महत्व देना और सभी के साथ मिलकर त्यौहार और सभी के सुख दुःख में शामिल होना ही वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का ही छोटा सा स्वरूप है। 

- भगवती पंत कहती हैं कि दो शब्दों से बना गूढ़ अर्थ है छुपा हुआ विश्व बंधुत्व की भावना ही सनातन की आवाज है इसी धर्म को लेकर भारत ने पहना सिर पर ताज है। सत्य, अहिंसा, दया, स्नेह, समता का इसमें भाव भरा है। 

- मंजू पंत ने वसुधैव कुटुम्बकम् को अपने शब्दों में छिपाए अपने अर्थ और व्याख्या को पूरी वसुधा (धरा, धरती, पृथ्वी) ही एक परिवार  बताया है। परिवार के दुःख- सुख को ही हम जब अपना नाम मानकर, अपने विचारों और सोच का। नज़रिया इतना विस्तृत कर लेते हैं कि हम पास- पड़ोस, प्रान्त, राज्य और यहां तक की देश- विदेश के भी सभी सुख और दुःख में हमारी सहभागिता नजर आने लगती है। 

- अपराजिता राजोरिया के शब्दों में वासुदेव कुटुम्बकम् अर्थात् सम्पूर्ण भारत एक परिवार है। अलग- अलग धर्म जाति के बावजूद सभी में भाई चारे का व्यवहार देखा जा सकता है। रंग, रूप संस्कृति, रहन सहन खान- पान और माहौल के होते हुऐ भी सब के.सहयोग से भारत- नेपाल एक रंग बिरंगा गुलदस्ता बना हुआ भारत- नेपाल। जो की विभिन्नता में एकता का प्रतीक है। संगठन की ताकत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। पर वो पूंजी, धर्म, शारीरिक क्षमता साथ ही किसी लिंग का मोहताज नही होता। जैसे परिवार के सभी सदस्य एक दूजे का ध्यान रखते हैं एक साथ त्योहार मनाते, दुख में साथ निभा कर एक दूजे की ताकत बन जाते है। यही व्यवहार समाज, देश और फिर विश्व के लिऐ बन कर वासुदेव कुटुम्बकम् का आकार लेकर वृहत होकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में समा जाता है। 

- विमलेश चतुर्वेदी ने कहा कि आज विश्व परिवार दिवस है, परिवार में प्यार और सद्भाव अच्छे समाज का निर्माण करता है। समाज से राष्ट्र मजबूत होता है और राष्ट्र से विश्व में भाईचारा बढ़ता है। हमारा पड़ोसी देश इस को पलटने का हर संभव प्रयास  पिछले कई वर्ष  से लगातार कर रहा है। हम भारतीय उसे हर संभव रोकने का प्रयास करते हैं।सफलता हमें ही मिलेगी यह मन में विश्वास है। 

- सचिव : रश्मि मिश्रा के कथनानुसार परायों को अपना बनाना धरती मां से सीख कर ही गैरों के अपने बन जाते हैं। इस तरह से शनै: शनै: इस जग के हम हो जाते हैं और फिर ये विश्व ही हमारा और हम विश्व के हो जाते हैं। तीज और त्योहार साथ साथ मनाकर हम वसुधैव कुटुंबकम् से परिचित हो जाते हैं। 

- गार्गी जोशी ने बताया कि वसुधैव कुटुंबकम्, विश्व परिवार दिवस है पर पहले परिवार क्या है, ये तो समझ जायें, हम सामाजिक दृष्टि से देखें तो परिवार, रक्त संबंधों से जुड़ी एक अवधारणा है जिसमें सभी गुणसूत्रों के आधार पर, एक दूसरे से जुड़े है। परिवार की ये विशेषता है, कि वो बहुत वृहद भी हो सकता है और अति सूक्ष्म भी, वृहद में सब संबंध एक सूत्र में समा जाते हैं, सूक्ष्म में होते हैं बस मैं, मेरे बच्चे, मेरी बीबी। किन्तु परिवार ही तो मकान को, घर बनाता है जहाँ शांति है सुरक्षा है, जो स्वर्ग से सुंदर है पर अगर एक व्यापक, दृष्टिकोण को हम सब अपनायें समाज को, देश को, विश्व को भी अपना परिवार बनायें तो धर्म, जाति, प्रांत या फिर सीमाओं की दीवारों को तोड़ सबको अपना मानें, न सुनें बात, धर्म के आकाओं की तो कितना वृहद परिवार बन जाएगा सच्चे अर्थों में वसुधैव कुटुंबकम् का नारा रंग ले आयेगा। 

- गीतू शर्मा कहतीं हैं कि "वसुधैव कुटुंबकम्" कहता है सारा विश्व एक परिवार है जो प्रेम का आधार है, सबकी मानसिकता  यही हो कि सारा विश्व इक परिवार है। कभी किसी की सोच में नकारात्मकता न हो मर्यादा के दायरे में रहें अराजकता न फैले। हमसे ही परिवार है परिवार से ही हम हैं। आज प्रण कर ले सभी 'वसुधैव कुटुंबकम्' का।
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