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देव पथ


देव पथ 

बता ही दे
मालूम हो तुझे तो,
मंदिर-मस्जिद-चर्च का रस्ता ,
यह सब भूल जाता हूँ मैं ,
जब पेट में आग दहकती है।

बच्ची के आह में 
देवी रोती नज़र आती है ,
बेटे के सुखे नैनों में 
देवता बिलखते नज़र आते हैं,
तोप के दहकते गोलों से ज़्यादा ज़ख़्म 
बिलखती माँ की नम आँखें देती हैं।

भूल चुका हुं मैं
मंदिर मस्जिद गिरजाघर का रस्ता, 
मालूम हो तुझे 
तो बता दे।

उन किताबों का अर्थ क्या ,
जो मानवता न सिखाती हो,
गोले बारुद की रचना कर
मानवता जो मिटाती हो,
इन टुटे खंडहरों में
ज़िंदा लाशें टहलती हैं ,
चीख़ चीख कहती हैं,
भूल चुके हम
मंदिर-मस्जिद-चर्च के रस्ते,
गर मालूम हो 
तो कोई बता दे।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
   नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 7618224223737174260
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