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सभ्य समाज में घटती आत्मीयता और बढ़ते वृद्धाआश्रम


नागपुर। विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम चौपाल के अंतर्गत कार्यक्रम 'सभ्य समाज में घटती आत्मीयता और  बढ़ते वृद्धाश्रम' आयोजन हिंदी मोर भवन रानी झांसी चौक में किया गया। प्रमुख अतिथि रामनारायण मिश्र अध्यक्ष विश्व सर्यूपारीण महासभा, नागपुर। विशिष्ट अतिथि अधिवक्ता जगत वाचपेई नागपुर, उपस्थिति थे। अतिथियों का स्वागत  अंबरीश दुबे ,  कृष्ण कुमार द्विवेदी ने शाल से किया गया. सर्वप्रथम मां सरस्वती की वंदना हेमलता मिश्र मानवी ने किया। 

कार्यक्रम का संचालन डा.कृष्ण कुमार द्विवेदी ने किया. इस अवसर पर प्रमुख अतिथि रामनारायण मिश्र ने अपने उद्बोधन में सर्वप्रथम कविता के माध्यम से - मात- पिता के चरणों में ही सारा संसार है, जो सेवा करते दिल से उनका  बेड़ा पार है, झोली भर लो तुम नेह आशीष से, मिलता जीवन बस एक बार है, नैनों से नित झरता उनका स्नेह अपार है, माता- पिता के चरणों में ही सारा संसार है। 

आज के संदर्भ में वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्या और सभ्य समाज में घटती आत्मीयता का मुख्य कारण है पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का अंधानुकरण। पिछले लगभग 30 वर्षों से ऐसी मानसिकता का प्रादुर्भाव हुआ है कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को लगभग भूल से गये हैं और वर्तमान परिवेश में रहकर अपने को आधुनिक सभ्य कहलाने के लिए एक तरह से होड़ का हिस्सा हो गये हैं। 

सारी विकृति के पीछे का मूल कारण है सत्संग से दूर हो जाना। जब से लड़कों और लड़किया में सामाजिक और नैतिक रूप से समानता रहेगी आत्मीयता का सदैव अभाव रहेगा। रिश्ता रिश्ता न रहकर महज़ खाना पूर्ति का मुख्य कारण बन जायेगा जो केवल शारीरिक सुख तक ही सीमित हो जायेगा। जहां किसी के लिए प्यार नामकी कोई चीज होगी ही नहीं। 

एकल परिवार का चलन बढ़ता ही जायेगा  ऐसे में बुजुर्गों को लेकर मानसिकता बहुत ही स्पष्ट होगी कि उन्हें वृद्धाश्रम में ही रहना होगा वहीं रहकर अपने सहारे की तलाश करनी होगी।
यह बहुत ही ज्वलंत स्थिति है हमारे समाज की। इसका निराकरण तभी संभव है जब हम अपने खोये हुये मुल्यों को पहचाने आत्म चिंतन करें और अपने को संयमित कर वास्तविकता को पहचाने और ठोस निर्णय लेकर आगे बढ़े।

धीरे धीरे सफ़लता अवश्य मिलेगी ऐसा उद्बोधन रामनारायण मिश्र ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में किया। अधिवक्ता जगत वाचपेई ने सभ्य समाज की घटती आत्मीयता के सभी पहलुओं  पर विस्तार रूप से अपने विचार रखे। 

मदन गोपाल वाचपेई ने कहा सभ्य समाज में व्यक्तित्व का बड़ा रुतबा होना चाहिए। ज्ञान के हिसाब से उसका  वेतन होना चाहिए। ज्यादातर देखने में आया उच्चवर्ग के लिए वृद्धाश्रम वरदान साबित हो रहे है। सभ्य समाज में उनके नाम से नहीं बल्कि नंबर से जाने जा रहे है। यह हमारे सभी समाज की विडंबना है। पहले छोटे परिवार के साथ बड़ा परिवार साथ में रहता था। अब बड़े परिवार के साथ छोटे परिवार रह रहे है। पहले और अब में कितना बदलाव आ गया है। हेमलता मिश्र 'मानवी' ने वृद्धाश्रम को कहानी के मार्फत अपने विचार प्रगट किए। रमेश मौदेकर गज़ल के माध्यम से वृद्धाश्रम पर विचार व्यक्त किए।

इस कार्यक्रम में श्रीमती सुजाता दुबे, वैभव पी. शर्मा, अशोक दुबे, पदमदेव दुबे, रोशन कुमार सिंह, सुऐश मिश्रा, डा.सौरभ शुक्ला, श्रीकांत दीक्षित, लहेर पटेल, राजेश प्रसाद, नरेंद्र ढोले, बी.पी. सिंह, राजेश खरवटकर, अनिल महाजन की उपस्थिति रही।आभार प्रदर्शन अंबरीश दुबे ने किया.
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