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गलतफहमी


गलतफहमी
हमेशा आज के ज्ञान पर
आधारित होती है।
जैसे पृथ्वी "चपटी" है
जैसे सूर्य पृथ्वी के "चक्कर" लगाता है
जब मेरा ज्ञान बढ़ा, 
तो गलतफहमी दूर हुई।

आज जो सच है, 
कल शायद बदल जाए,
क्यूंकि हर नया सबक, 
एक नई राह दिखाए।
जो मैं नहीं जानता, 
वही मेरा अंधकार है,
जैसे ही उसे जाना, 
वो ज्ञान का संसार है।

हर नई सीख,
एक नया नज़रिया देती है,
बंदिशों को तोड़कर, 
आज़ादी देती है।
कभी लगता है, 
जो देखा, वही सब कुछ है,
फिर पता चलता है, 
ये तो बस एक छोटा सच है।

ज्ञान का ये सफ़र 
कभी रुकता नहीं,
हर पल कुछ नया पाने को
 हम रुकते नहीं।
जब भी लगता है कि
सब जान लिया मैंने,
तब प्रकृति मुस्कुराती है, 
और कहती है 
अभी और सीखना है तुमने।

और जैसे सुकरात ने 
सदियों पहले सिखाया,
कि सच्चा ज्ञानी वो,
जिसने अपनी 
अज्ञानता को पाया।
वो कहता था, 
मैं सिर्फ इतना जानता हूँ 
कि मैं कुछ नहीं जानता,"
यही तो है ज्ञान की पहली सीढ़ी,
यही होता है सच्चा रास्ता।

हर नई समझ, 
एक पुरानी
गलतफहमी को मिटाती है,
हर बढ़ता कदम, 
हमें और बेहतर बनाता है।
ज्ञान का ये प्रवाह, 
कभी रुकने वाला नहीं,
क्यूंकि सीखने की प्यास, 
कभी बुझने वाली नहीं।

ये ज्ञान की गंगा है,
ना हिमालय से निकली,
ना किसी भूगोल में सीमित —
ये तो भीतर की गहराइयों से बहती है,
जहाँ आत्मा
अपने असली स्वरूप को पहचानती है

ये ज्ञान की गंगा है
ये सिर्फ वैकुंठ के 
क्षीरसागर में जाकर मिलती है
जहां सब स्पष्ट होता है
कोई किन्तु परन्तु नहीं रहता

वहाँ ना कोई किन्तु होता है,
ना कोई परन्तु,
ना अपेक्षा, ना अस्वीकार,
बस एक निर्मल स्वीकार,
जो हर द्वंद्व को पिघला देता है।

प्रभु के पास सब उत्तर रहते
जब हम प्रभु के सानिध्य में रहते
तब मन में प्रश्न नहीं रहते
जिस कि कोई इच्छा नहीं बचती
उसी को प्रभु अपने पास रख लेते
कैवल्यधाम की नागरिकता
ऐसे ही नहीं मिलती

- राजेन्द्र चांदोरकर ‘अनिकेत’
   नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 568285993017748099
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