राजनीती का शिकार हो गई हमारी हिंदी
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गाने वाले वही लोग अब तिरछी टोपी पहनकर हिंदी के खिलाफ मोर्चा निकाल रहे हैं। चेन्नई से लेकर महाराष्ट्र तक ‘हिंदी हटाओ’ के होर्डिंग ऐसे लहराए जा रहे हैं, जैसे हिंदी में प्रेमपत्र लिखना कोई बड़ा अपराध हो गया हो।
विरोध का यह उबाल देखकर लगता है मानो हिंदी कोई कर्ज वसूली का नोटिस लेकर आई हो -
“भाईसाहब, अब तो बोलो!”
लेकिन नहीं, हिंदी की इस दुर्दशा का असली कारण कुछ और ही है। यह वही पुरानी राजनीति है, जो हर मुद्दे में अपना नमक छिड़कना नहीं भूलती।
चेन्नई में हिंदी का विरोध ऐसे हुआ जैसे हिंदी बोलने से तमिलनाडु की आत्मा खतरे में पड़ जाएगी। कोई पूछे -
“मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा,”
वाले सुर किस भाषा में गाए थे?
वहीं महाराष्ट्र में भी वही तमाशा। मुंबई में हिंदी फिल्मों की कमाई से अरबों रुपये जेब में जाते हैं, लेकिन चुनावी रैलियों में मराठी अस्मिता का झंडा ऊंचा कर हिंदी को अपराधी बना दिया जाता है।
यही नेता चुनाव में हिंदी भाषियों से भी वोट मांगते है। तब इनकी मराठी अस्मिता गुटखा चबाने चली जाती है!
राजनीति का यह खेल ऐसा है कि इसमें हिंदी सबसे आसान शिकार बन गई है।
अंग्रेजी बोलो - तो ग्लोबल सिटिजन कहलाओ।
हिंदी बोलो - तो दबाव डालने वाली भाषा का तमगा लगवा लो।
वाह री राजनीति, तेरा खेल भी निराला!
जिस हिंदी ने देश को राष्ट्रगीत दिए, वही हिंदी अब फुटबॉल की तरह लात मारने की मशीन बना दी गई।
लेकिन यह भी सच है -
हमें हर राज्य की अपनी मातृभाषा पर गर्व है।
हमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, बंगाली, असमिया - सभी भाषाओं से प्रेम है।
हर बोली हमारी साझी विरासत है।
हर भाषा में माँ की ममता बसती है।
"सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,"
इस मिट्टी की खुशबू हर जुबां में रची-बसी है।
कोई भाषा छोटी- बड़ी नहीं।
हर बोली एक रंग है, और सब मिलकर बनाते हैं भारत का इन्द्रधनुष।
लेकिन अफसोस -
राजनीति की दुकान के लिए यह इन्द्रधनुष सबसे आसान निशाना है।
जिस दिन हिंदी के नाम पर वोट खींचने का खेल बंद होगा,
उस दिन मिले सुर मेरा तुम्हारा की असली आत्मा लौटेगी।
तो साहब, राजनीति का तांडव चलता रहेगा -
कभी चेन्नई में हिंदी का कफन ओढ़ाया जाएगा,
कभी महाराष्ट्र में उसे अपमानित किया जाएगा।
लेकिन हिंदी मुस्कुराकर कहेगी -
"मैं तो यहीं हूं, तुम्हारी कुर्सियों से बड़ी और मजबूत!"
और हर दिल से एक गीत उठेगा -
"विविधता में एकता, हिंद की शान है,
भाषाओं के रंग से रोशन हिंदुस्तान है!"
- डॉ. प्रवीण डबली
वरिष्ठ पत्रकार