अमृत प्रतिष्ठान का शास्त्रीय संगीत समारोह बड़े उत्साह के साथ सम्पन्न
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शास्त्रीय संगीत परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को समर्पित
नागपुर। शास्त्रीय संगीत क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले कै. पं. भातखंडे, कै. पं. रातंजनकर और कै. पं. अमृतराव निस्ताने जैसे गुरुवर्य की स्मृति को समर्पित अमृत प्रतिष्ठान, नागपुर प्रतिवर्ष संगीत समारोह का आयोजन करते आ रहा है। प्रतिभावान और गुणी कलाकारों का कार्य जनाभिमुख करने के उद्देश्य से यह प्रतिष्ठान पिछले 26 वर्षों से निस्वार्थ भाव से कार्यरत है तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेज रहा है।
इसी क्रम में, इस वर्ष भी जन्माष्टमी के पावन पर्व पर रविवार 17 अगस्त को अमृत प्रतिष्ठान का शास्त्रीय संगीत समारोह 2025 बड़े उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन, सरस्वती वंदना एवं गुरु वंदना से किया गया। कार्यक्रम का प्रास्ताविक तथा संचालन सोनाली अडावदकर ने अत्यंत सुंदर तरीके से किया।
प्रथम सत्र
प्रथम सत्र में सुप्रसिद्ध तबलावादक डाॅ. देवेंद्र यादव एवं उनके शिष्य विपुल ढोले ने अपने दमदार तबला वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। दिल्ली– अजराड़ा घराने की परंपरागत लयकारी युक्त तीनताल की प्रस्तुति में विविध कायदे, परन और रेले उन्होंने अत्यंत प्रभावी और मनमोहक अंदाज में प्रस्तुत किए, जिसे श्रोताओं से जोरदार सराहना मिली।
इसके पश्चात् संगीताचार्य गुरुवर्य कै. पं. अमृतराव निस्ताने द्वारा (1949– 62) के दौरान रचे गए एवं नागपुर आकाशवाणी से प्रस्तुत राग मालकौंस और तोडी की बंदिशों की हिंडोल पेंडसे की आवाज़ में रिकॉर्ड की गई सीडी का विमोचन प्रमुख अतिथि डाॅ. उपेंद्र कोठेकर (साहित्यकार व भाजपा संगठन मंत्री) के हाथों किया गया।
साथ ही, संगीत क्षेत्र के प्रतिभाशाली कलाकारों– हिंडोल पेंडसे (गायक), रुद्रप्रताप दुबे (गायक), संदीप गुरमुले (हार्मोनियम वादक), डाॅ. देवेंद्र यादव एवं विपुल ढोले (तबलावादक) का भी मान्यवरों द्वारा सन्मान पत्र और स्मृतिचिन्ह देकर सत्कार किया गया। इस अवसर पर अतिथियों ने प्रतिष्ठान की अब तक की यात्रा की प्रशंसा की और उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं।
द्वितीय सत्र
दूसरे सत्र में युवा, प्रतिभाशाली गायक रुद्रप्रताप दुबे ने अपने गायन की शुरुआत राग जोग से की। उन्होंने बिलंबित एकताल की बंदिश 'नहीं परत चित चैन' से और तत्पश्चात मध्यलय की 'पिया बिन जागत रैन' बंदिश से श्रोताओं को भावविभोर किया। इसके बाद राग मारू बिहाग में 'आज आए मोरे धाम श्याम' तथा ठुमरी 'ऐरी सखि मोरे पिया घर आए' का प्रभावशाली गायन प्रस्तुत किया।
अपने कार्यक्रम का समापन उन्होंने कृष्ण भजन 'बाजे मुरलिया बाजे..' से किया। उनकी मधुर आवाज़, सुरीले, स्पष्ट स्वर, आकर्षक आलाप और तानों से श्रोताओं का मन मोह लिया।
इस दौरान संगत में संदीप गुरमुले ने संवादिनी पर और विपुल ढोले ने तबले पर शानदार साथ दिया। दोनों की संगत ने गायकी का सौंदर्य कई गुना बढ़ा दिया और इस प्रस्तुति को खूब सराहना मिली।
प्रमुख उपस्थिति
इस संगीत समारोह में संगीत क्षेत्र के वरिष्ठ और मान्यवर कलाकारों में सुप्रसिद्ध संतूर वादक पं. वाल्मिक धांडे, सरोद वादक पं. शंकर भट्टाचार्य, गायक पं. भाऊभट लाडसे, हिंडोल पेंडसे, जनार्दन लाडसे, चेतन बालपांडे, निखिल मडावी, रीतेश तानेलवार, अमोल उरकुडे, निलेश खोडे, मधुरिका गडकरी, सुरेश खर्डेनविस, वसंत पत्थे, यशोधन कानडे, मोहन निस्ताने और मोरेश्वर निस्ताने सहित कई संगीत प्रेमी और युवा बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
यह सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ाने वाला और रसिकों को आनंदित करने वाला संगीत समारोह श्रोताओं के हृदय में लंबे समय तक स्मरणीय रहेगा।