आवारा कुत्ते : सख्त कार्रवाई का समय!
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नागपुर (दिवाकर मोहोड़)। आवारा कुत्तों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के संशोधित फैसले ने जन सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच एक बेहद जरूरी संतुलन स्थापित किया है। लंबे समय से, आवारा कुत्तों के बढ़ते खतरे को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है, जबकि हर साल लाखों भारतीय कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं और रेबीज से अनगिनत जानें जाती हैं।
पशु प्रेमी, अपने अंध विरोध में, अक्सर यह भूल जाते हैं कि मानव जीवन भी उतना ही कीमती है। आवारा कुत्तों पर कार्रवाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं है अगर वे आम नागरिकों - बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों - की पीड़ा को स्वीकार नहीं करते, जो रोज़ाना इस खतरे का सामना करते हैं।
अदालत का निर्देश स्पष्ट है : आवारा कुत्तों का नसबंदी और टीकाकरण, उसके बाद उन्हें उनके मूल स्थानों पर छोड़ दिया जाए। यह मानवीय लेकिन व्यावहारिक समाधान तभी सफल हो सकता है जब नगर निकाय इसे पूरी गंभीरता से लागू करें। आधे- अधूरे उपाय संकट को और बढ़ा देंगे।
अब समय आ गया है कि खोखली बहसों से आगे बढ़ा जाए। नागरिकों को रेबीज और अनियंत्रित कुत्तों के हमलों से बचाना क्रूरता नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी है। देश अब और इंतज़ार नहीं कर सकता।