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दोस्ती


ना खून का रिश्ता, ना जन्मों का नाता 
फिर भी प्यारे लगते हैं वह छिछोरे दोस्त 
जो रहते दिल के बेहद करीब ।
पतझड़ में भी बाहर है दोस्ती 
देते हैं ढेर सारा प्यार उनको भी जिनकी नहीं है कोई हस्ती ।

सावन की फुहार है यारी, 
न जाने क्यों लगती है प्यारी 
जाति धर्म न उम्र का कोई जोड़ 
फिर भी रिश्तो से भी होती है बेजोड़ ।
दिल के सारे खुल जाते हैं जज्बात 

बिन बताए ही उनको पता चल जाती हर बात ।
आवाज से ही जो पहचान लेते हैं हाल- ए- दिल ।
वह होते हैं कमीने दोस्त बेमिसाल ।
सुख-दुख में जो देते हैं, हर पल, हर घड़ी साथ ।
वह होते हैं जिगरी यार 

जो कर देते हैं हर मुश्किल पार ।
चार यार मिल जाए तो हो जाती है महफिल तैयार,
फिर जो चलता बातों का सिलसिला 
तो भूल जाते समय की धार।

- प्रा. नीलिमा माटे
  नागपुर, महाराष्ट्र 

काव्य 346256157941358472
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