जगत में कोई नहीं है परमानेंट...
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चार दिन की जिंदगी खुशी से काट ले,
मत किसी का दिल दुखा, दर्द सबका तु बाँट ले
कुछ नहीं है साथ जाना एक नेकी कर ले
कर भला होगा भला गांठ में ये बांध ले ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट ...
तुम चाहे बडे हो जाओ
चाहे बन जाओ सब के प्यारे
आवागमन की इस जिंदगी में सब है रेशोरेश
अन्त समय मैं उठ जाएँगे तेरे तम्बू टेन्ट ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट ...
तुम चाहे काशी जाओ,
मथुरा जाओ, या जाओ दिल्ली कैंट
मन में नाम प्रभु का राखो
चाहे धोती पहनो या कोट पेन्ट ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट...
तुम राष्ट्रपति बन जाओ,
या बन जाओ जनरल लेफ्टिनेंट
यह काल सभी को खा जायेगा
चाहे लेडिज हो या जेंट्स ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट ...
तुम सत्यवादी धर्म वादी की संगत कर लो,
यही है सच्ची गार्मेंट तुम सब
इसमें रम जाओ और हो जाओ सेट ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट...
तुम लड्डू खावो बरफी खाओ
और कर पेट को लो सेट
ये तुम्हारी हालत बिगाडेगे फिर रोना भर पेट ।। जगत में कोई नहीं है परमानेंट...
तुम इंडिया में रहो, चाहे रहो अमेरिका
थेट प्रेम लखन कहे वापस
आकर घर में होना पड़ेगा सेट ।।
जगत में कोई नहीं है परमानेंट...
- लखनलाल माहेशवरी, पूर्व व्याख्या
अजमेर, राजस्थान,