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खिलती कलियां, उड़ती तितलियां...

खिलती कलियां, उड़ती तितलियों जैसी ही समाज मे मुस्काती, नाज़ुकता, कोमलता से भरे हृदय वाली ही हमारी बेटियां होती हैं जो इतनी नाजुक होती है की जरा से छू लो उनके पंख टूट के बिखर जाते हैं वो उड़ना भूल जाती है तितली की तरह छटपटाती ताउम्र का दर्द पाती है़ यही हो रहा आजकल समाज मे हमारी नाज़ुक सी तितलियों के साथ।

आज वर्तमान मे बेटियों के साथ हो रहे अन्याय से कोई भी इंसा अंजान नही है। क्या कसूर इन बेटियों का सिर्फ़ एक औरत,नारी बनना क्या कभी सुना की एक औरत ने मर्द का बलात्कार किया है ? नहीं ना ! 

फिर मर्द क्यों हमेशा कहीं न कहीं घात लगाऐ रहते हैं उनको दो साल की बच्ची जो अभी तो जिंदगी कै समझ भी ना पाई है उसे तक नहीं छोड़ते क्या कसूर है आखिर इनका घृणा और क्रोध से भर जाती हूं सोच के की बेटी क्या लोग इसलिए पैदा करते हैं की लोग हैवानियत की हद पार करते हुए उसे अपना शिकार बना दें।
        
आज बहुत ही कड़वा सच बताती हूं आज लोग जो बेटियों को गर्भ मे मार देते हैं या पैदा ही नहीं करना चाहते हैं जाधते हैं इसका कारण सिर्फ़ पूरा समाज है, हां कड़वा है पर सच्चाई भी बुरा लगा ना अब कारण भी बताती हूं बेटी न पैदा करने का जो की समाज मे फैली हवस की हैवानियत और दहेज़ प्रथा है। 

हमारी बेटियां खिलती कलियों सी नाज़ुक है उड़ती चहकती तितलियों की तरह खुले आसमान मे उड़ना चाहती है पर कुछ हैवान अपनी हवस की भूख मिटाने के लिये इन उड़ती चहकती महकती तितलियों की तरह हमारी नाज़ुक सी बेटियों के जैसे पर काट देते हैं ताउम्र का दर्द इन बेटियों को निचोड़ के रख देता है बहुत ही समाज का कड़वा अनुभव पाके हमारी बेटियां टूट जाती है।
       
अब आप ही बताइये समाज मे कहतें बेटी की जन्म दर बेटों के मुकाबले दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है तो ऐसे भूखे, नरभक्षी, हवस के पुजारी जैसे इंसानों की बस्ती मे कौन अपनी बेटी को लाना चाहेगा। 

हर और आज बेटियों की चितकार गूंज रही है न जाने कितने तो हादसे बदनामी की डर से सामने आते ही ना होंगे खामोशियों से समाज मे मान,शान के चलते दबा दिये गये होंगे। 

दुःख होता है समाज मे जब लोग कहते हैं बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ पर कैसै ? तितली सी नाज़ुक बेटी चलो आज समाज मे लाऐ तो क्या गारंटी है की उसकी सुरक्षा का जिम्मा ये समाज उठाऐगा।नहीं ना ! 

आज समाज मे बेटियों के साथ बढ़ते अत्याचार को देखते हुए मां आज बेटियां पैदा करने मे कतराती है सोचती हैं यदि मैंने बेटी पैदा की और मेले कलेजे के टुकड़े के साथ कुछ हो गया तो ? 

अब ये सवाल आज समाज से है क्या बेटी की दर आज जो कम हो रही है क्या उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा ? खिलती कलियों उड़ती तितलियों जैसी बेटियों को भी जीने का अधिकार है।

वीना आडवानी
नागपुर, महाराष्ट्र

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