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देशी तिलहनों को बढ़ावा देना परमावश्यक :- छाढ




किसानों को रोजगार मिलने के साथ दुधारू जानवरो को मिलेगा शुद्ध आहार


नागपुर। भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, हजारों वर्षों से देश का प्राथमिक व्यवसाय कृषि रहा हैं. हमारी अर्थव्यवस्था मुख्यरूप से कृषि पर निर्भर रहती हैं, ऐसी परिस्थिति में भारत द्वारा करोडों टन  तेल आयात होता हैं. जैसे पाम, सोयाबीन, सनफ्लावर इत्यादि और वनस्पति घी (डालडा) जो तेलों से बनता हैं, उसका उपयोग होता हैं. 

यह देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा हैं बल्कि यह आमजन के स्वास्थ्य को भी बिगाड़ रहा हैं. और तो और इससे किसानों का रोजगार भी छीन रहा है. उक्त कथन प्रकृति माहिर टी. एच. छाढ (शंभुवानी) ने व्यक्त करते हुए कहा कि भारत मे स्वदेशी तिलहन जैसे अलसी (जवस) , तिल्ली, सरसो सदियों से नही अपितु युगों से हो रही हैं. 

इसकी पैदावार पर सरकार को जोर देना परमावश्यक है. इसके लाभों को गिनाते हुए शंभुवानी ने कहा कि इससे तेलों के खपत की पूर्ति होने के साथ विदेशों से तेल आयात करने की आवश्यकता नही रहेगी. तिलहनों से निकलने वाले चारे से किसान पशुपालन आसानी से कर पायेगा. 

पशुपालन से गोबर गौमूत्र  की प्राप्ति होंगी, जो कि सेंद्रिय खाद बनाने में उपयोगी हैं, जिससे  फसलों की उपज और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होंगी. पशुपालन से दूध की खपत भी बढ़ेंगी तथा किसानों को रोजगार भी मिलेगा. 

छाढ का मानना है कि भारतीय तिलहने देश अर्थव्यवस्था की जड़ें हैं, इसकी खेती से देश आत्मनिर्भर बनेगा. इस पर सरकार ने एक समिति बनाये. इन सब विषयो पर विशेष ध्यान देने से न केवल किसान सदृढ़, समृद्ध बनेगा, बल्कि किसानों द्वारा की जा आत्महत्याओं की घटनाओं पर अंकुश लगेगा.
समाचार 7804640743727675695
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