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मानवता के प्रकाश स्तंभ श्री गुरु गोबिंदसिंघजी



बुधवार २० जनवरी पर विशेष

दशमेश पिता गुरु गोबिंदसिंघजी का व्यक्तित्व अत्यंत सर्वपक्षीय एवं बहुआयामी है। गुरुजी की शख्सियत में एक साथ अनेक गुण एवं विशेषताएं उपस्थित हैं। वास्तव में दशमेश पिता एक संपूर्ण एवं आदर्श शक्ति हैं जिनसे प्रेरित होकर चलने पर मनुष्य न सिर्फ जीवन के उच्चतम उद्देश्यों को प्राप्त करता है बल्कि जीवन की आम समस्याओं से निपटने के लिए मार्गदर्शन भी हासिल करता है इस हेतु दूसरे शब्दों में श्री गुरु गोबिंदसिंघजी मानवता के प्रकाश स्तंभ हैं। 

श्री गुरु गोविंदसिंघजी संत और सिपाही भी हैं। गुरुजी ने किसी को दुख देने के लिए या लोभ लालच के लिए कृपाण नहीं उठाई बल्कि गरीबों, पीड़ितों की रक्षा और जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन व मानव अत्याचार के विरुद्ध शस्त्र उठा लिए। युद्ध करते समय भी गुरुजी का हृदय उच्च मानवीय गुणों से ओत-प्रोत रहता था। यह बात प्रसिद्ध है कि गुरुजी के तीरों में सोना मढ़ा रहता था ताकि उस तीर से मरने वाले को उस स्वर्ण के से अंतिम संस्कार के लिए सामान मिल सके और यदि वह घायल हुआ है तो उसे इलाज का खर्च मिल सके। 

जब गुरुजी के पास सेवक भाई घनईया की शिकायत मिली कि वह शत्रु दल के घायल व्यक्तियों को भी पानी पिलाता है तो गुरुजी ने भाई घनईया की प्रशंसा की और दवा अपने पास से देकर आज्ञा दी कि अब उनकी मरहम पट्टी भी किया करो। गुरुजी का यह उच्च आचरण मनुष्य को सिखाता है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों मानवीय मूल्यों को कभी नहीं भूलना चाहिए। 

गुरुजी ने देश के अनेक स्थलों पर भ्रमण कर सत्य मार्ग दिखाकर सतिनाम से जोड़ा। कुरुक्षेत्र में गुरुजी के एतिहासिक स्थल -  गुरु गोविंदसिंघ महाराज सूर्यग्रहण के समय जनवरी 1688-89 में कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में पहुंचे तथा राजघाट के पूर्व स्थान की ओर अपना डेरा लगाया। 

गुरु गोबिंदसिंघजी के साथ उनकी धर्मपत्नियां (माता साहिब कौर, माता सुंदरी, माता जीतो) और गुरु गोबिंदसिघजी की माताजी (माता गुजरी) तथा गुरु गोबिंदसिंघजी के सुपुत्र साहिबजादा अजीतसिंह थे। गुरुजी ने यहां खीर तथा मालपूड़े का लंगर शुरु किया। एक योगी ने मंत्रों की शक्ति से अपनी भूख बढा दी और पंक्ति में बैठकर बेअंत खीर तथा पुड़िया खाता रहा ताकि लंगर समाप्त हो जाए और गुरुजी की बदनामी हो। 

तब अंतर्यामी गुरुजी ने लंगर बांटने वाले सेवक को 'सतिनाम' कहकर पूड़ी तथा खीर बांटने के लिए कहा जिससे वह योगी तुरंत ही तृप्त हो गया तथा गुरु गोबिंदसिंघजी की महिमा जानकर उनके चरणों में झुक गया।  कुरुक्षेत्र में गुरु गोबिंदसिंघजी ने दान हेतु एक गधी (खोती) मंगवायी, जिसे ब्राम्हाणों ने लेने से इन्कार कर दिया। तब एक नौजवान पंडित ने अपनी माँ से आज्ञा लेकर यह दान स्वीकार कर लिया। जो वास्तव में एक बहुमूल्य दूध देने वाली गाय थी। 

दयालू गुरुजी उस नौजवान पंडित की माता के घर स्वयं पधारे तथा धन-दान भेंट दिया। लिखा है कि गुरुजी ने अपने ताँबे का पट्टा भी इस स्थान पर दिया था जो कि अभी भी संगत के दर्शन के लिए रखा गया है। श्री कलगीधर सत्संग मंडल की संगत व दास ने गुरुजी के इस पवित्र स्थान गुरुद्वारा पातशाही दसवीं व तांबे के पट्टे के भी दर्शन किए। 

गुरुद्वारा पातशाही दसवीं ब्रम्हसरोवर के किनारे शोभायमान है जो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पास कुरुक्षेत्र में है।  ऐसे महान सत्य मार्ग दिखाने वाले पूर्ण गुरु व परमेश्वर के अवतार श्री गुरु गोबिंदसिंघजी का जन्म पोह सुदी सप्तमी संवत 1723 को पटना शहर में हुआ, जिसकी इस वर्ष समगणित अंग्रेजी तारीख 20 जनवरी 2021 बुधवार को है, उनकी 354 वीं जयंती पर उनके पावन चरणों में शतः शतः नमन। 

अधि. माधवदास ममतानी  

(संयोजक) श्री कलगीधर सत्संग मंडल, जरीपटका, नागपुर,
फोः 0712 - 2642094

अभिवादन 5034460252227980590
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