मातृ दिवस के अवसर पर आरिणी साहित्य समूह की ऑनलाइन काव्यगोष्ठी संपन्न
नागपुर/भोपाल। आरिणी साहित्य समूह द्वारा 10 मई 2021 को अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन (गूगल मीट) काव्यगोष्ठी आयोजित की गई। ऑनलाइन काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार चरणजीत सिंह कुकरेजा ने की। सरस्वती वंदना डॉ शोभा रानी तिवारी, इंदौर ने प्रस्तुत की। इस काव्यगोष्ठी में पूरे भारत से रचनाकार शामिल हुए।
गोष्ठी का सरस संचालन डॉ मीनू पाण्डेय नयन ने किया। इस गोष्ठी की विशेषता रही कि इसमें शामिल हुए समस्त रचनाकारों ने अपनी माँ या सासू माँ के द्वारा उपहार में दिए वस्त्र धारण किए। सभी ने अपनी माँ को समर्पित करते हुए एक से बढ़कर एक रचना प्रस्तुत की।
सम्मिलित प्रमुख रचनाकारों की रचनाओं की एक झलक :
माँ तुम्हारी याद बहुत आती है।
मधुर मुस्कान बहुत याद आती है।
- कल्पना विजयवर्गीय
माटी का मैं पुतला, और इस पुतले की जान तू।
बेटों वाले इस समाज में, बेटी की पहचान तू।
- कृति सिंह, भोपाल
जन्म देती है जो, कष्ट सहती है वो।
जिसके ऋण से कभी उरण इंसा न हो।
- हंसा श्रीवास्तव
ईट पत्थर से तो मकान बना करते हैं ,
घर तो केवल माँ से ही बनती हैं।
- मनोरमा पंत
मां तुम जो रोई मैं डोर से दौड़ी चली आई
- जया आर्य
सहज सरल सीधी वाणी सी, मुझ पर नेह लुटाती है।
ऊर्जावान मंगला माता, अदम्य साहस दिखलाती है।
- सुनिता शर्मा (सिद्धि)
माँ इस संबोधन में पूरा ब्रह्माण्ड समाया है।
ममता मोह मार मेहर मजा मौज भरमाया है।
- डॉ. रंजना शर्मा
.मेरे बच्चो, मैं बहुत एकाकी, उदास हूँ। आओ बैठो मेरे पास, कहो अपनी, सुनो मेरी।
- यशोधरा भटनागर
माँ तुम करुणा, ममता, वात्सल्य और स्नेह प्रेम में पगी छाँव सी।
- वन्दना अर्गल
उस आँचल की छांव भली है, जिसमें हमारी रूह पली है।
जीवन पथ पर हर सफर में,दुआ उसी की सँग चली है।
- चरनजीत सिंह कुकरेजा
ईश्वर की अनुपम व अदिव्तीय, कलाकृति है माँ।
उसकी इस संरचना, का कोई जोड़ नहीं है।
- हेमा जैन, इंदौर
माँ स्नेहमयी. माँ गुरु माँ, वात्सल्य से परिपूर्ण माँ।
अपना जाया या हो पराया, निश्छल प्रैम छलकाती माँ।
- सुषमाप्रदीप मोघे, इंदौर
माँ न जाने कहाँ हुई गुम, इस दुनियाँ के मेले में।
- कमल चंद्रा, भोपाल
मातु सम कोई न दिखता आज।
माँ है जगजननी घर की लाज।
- अशोक पटसारिया नादान, टीकमगढ़
एक सिंधु सी मेरी माँ, और पंच नदी सी हम बहनें।
बिना भेद के उर में समाई, स्नेह हिलोरें ले मन में।
- सीमा शर्मा, कालापीपल
दूर से नजरें ढूंढ रहीं थी, हर शाम की तरह।
भीड़ में किसी अपने को, वही बालकनी वही उदासी।
- प्रमोद तिवारी, भोपाल
माँ कीं ममता की छाँव तले
जाने कब बड़ी हो गयी, पता ही नहीं चला।
काला टीका लगा , दुनियाँ की बुरी नज़र से बचाती रही मेरी माँ ,
और .. मैं जाने कब में बड़ी हो गई पता ही नहीं चला।
- शेफालिका श्रीवास्तव
कोई छुट्टी नहीं कोई वेतन नहीं, सम्मान की तो हकदार है माँ।
निस्वार्थ प्रेम की देवी है, अद्भुत निश्छल संसार है माँ।
- शिव कुमार गुप्त, निमाडी
मैं तेरे चरणों में जन्नत पाऊं मां।
मैं तेरे चरणों में शीश झुकाऊं मां।
तुम तो हो शक्ति स्वरूपा
तुम दुर्गा रूद्राणी हो
- शोभा रानी तिवारी, इन्दौर
जब तरसता है मन आवाज लगा लेती हूँ।
माँ को यूँ ही, मैं अपने पास, बुला लेती हूँ।
- डॉ. मीनू पाण्डेय नयन