मातृत्व सुख सिर्फ गर्भ से उपजे संतान की मोहताज नहीं : शशि दीप
अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस पर विचारणीय सुझाव..
नागपुर/मुंबई। मातृ दिवस के दिन जब दुनिया समस्त माताओं को सलाम करती है व महिलाएं मातृत्व की इस दिव्य अनुभूति का उत्सव मनाती है, अक्सर मेरी आखें उन बहनों के बारे मे सोंचकर नम हो जाती है जो अभी भी माँ बनने के लिए तरस रहीं हैं। एक पल के लिए कल्पना करें, विवाहित लेकिन निसंतान महिलाओं के लिए यह कितना पीड़ादायक होता होगा, जब उनके दोस्त व रिश्तेदार अपनी खुशखबरी सुनाते होंगे, और इनकी गोद हजार कोशिशों के बावजूद सूनी की सूनी रह जाती है।
परन्तु मैंने बेहद करीब से महसूस किया है, वे उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ती और अंदर ही अंदर प्रार्थना करती रहतीं हैं, कि एक न एक दिन भगवान ज़रूर उनकी तरफ़ ध्यान देंगे। साल दर साल कटता जाता है, वे मजबूत होते जाते हैं, परंतु उनके टूटे दिल का एक कोना रेगिस्तान में बहार की आशा लिए बाट जोहता रहता है।
वैसे तो सभी महिलाएं उस दिव्य सार्वभौमिक माँ का अवतार होतीं हैं इसलिए जन्म से ही मातृ आत्मा उनके भीतर विद्यमान होती है अतः यदि डाॅक्टर/ विशेषज्ञ अगर जाँच करके infertility की आशंका वयक्त करें तो भी वे बेसब्री से इंतज़ार करतें हैं कि क्या पता कब वह ख़ुशी दस्तक दे , उनके आंगन में बच्चे की किलकारी गूंज उठे और उनका जीवन हमेशा के लिए बदल सके।
यह भी सच है कि आजकल, निसंतान दंपत्तियों के जीवन की इस महत्वपूर्ण समस्या के समाधान के लिए चिकित्सा के कई अडवांस तकनीक विकसित हो गये हैं, अब इस समस्या का आसान इलाज आयुर्वेद में भी है परन्तु फिर भी सभी लाभान्वित नहीं होते, सफलता दर सिर्फ तीस प्रतिशत है बाकी लोगों को असफलता व मायूसी ही हाथ आती है। और फिर क्या करें, कहाँ जायें, आर्थिक हालात, सामाजिक/पारिवारिक दबाव, इंसान को मानसिक रूप से झकझोर कर रख देता है इसलिए निर्णय ले पाना ही टेढ़ी खीर है।
ऐसे में उनके जीवन में बाकी सभी संपन्नता होने के कारण वे मुस्कुराते हुए ऊपरी तौर पर सकारात्मक भी दिखेंगे लेकिन कहीं अनजाने में बातों के दरम्यान दूसरी महिला से कहीं अपने बच्चों का जिक्र हो गया तो उनकी आंखो में एक अदृश्य सा अश्रु बूंद देखा जा सकता है, जो उनके अंदर के दर्द को साफ़-साफ़ बयां करते हैं।
सोंचती हूँ किस प्रकार इन बहनों के जीवन में खुशियाँ आये। अभी इस कोरोना काल में बहुत बच्चों के माता-पिता दोनों इस मरणांतक वैश्विक महामारी की चपेट में आ गये और उनकी असामयिक मौत होने से वे मासूम अनाथ होते जा रहे हैं, ऐसे में ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि, काश ऐसा दिव्य संयोग बने कि ऐसे बच्चे व निसंतान दंपत्तियों के जीवन की कमियां एक दूसरे से पूरी हो जाये।
हालांकि बच्चा गोद लेने की प्रकिया भी खासी जटिल है, बहुत सारी कानूनी औपचारिकताओं से गुजरते हुए एक दो-वर्ष के जद्दोजहद के पश्चात ही बच्चा मिल पाता है, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि जीवन में जो कुछ हम चाहते हैं, कभी आसानी से नहीं मिलती। यह भी सच है कि संघर्ष, चुनौतियाँ और बाधाएँ जीवन को अधिक दिलचस्प और मूल्यवान बनाते हैं।
इसलिए, मैं अपने उन बहनों को आश्वस्त करना चाहूंगी जो संतानहीन होने का दुःख महसूस करते हैं,
भारत और दुनिया भर में अनेकों प्यारे बच्चे हैं, जिन्हें माता-पिता के निस्वार्थ प्रेम की आवश्यकता है। कृपया इन बच्चों को अपनाकर मातृत्व-पितृत्व के अद्भुत आनंद की अनुभूति के साथ जीवन की नयी शुरुआत करें।
मैंने अपने कुछ करीबी रिश्तेदारों व मित्रों को प्रत्यक्ष देखा है कि गोद लेने वाले दंपती किस प्रकार मानसिक व भावनात्मक स्थिरता के साथ बिल्कुल एक सामान्य दंपत्ति की भांति जीवन जीते हैं। आजकल तो केंद्र सरकार ने बच्चा गोद लेने के लिए सेंट्रल एडाप्शन रिसोर्स अथाॅरिटी (कारा) गठित की हुई है। संस्था महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंर्तगत काम करती है। यह संस्था नोडल बाडी की तरह काम करती है।
अब अगर परिवार में किसी को गोद लेने से आपत्ति है तो उस पर कदापि ध्यान न दें। याद रहे, गोद लेने वाले दंपत्ति ईश्वर द्वारा इस दिव्य अनुष्ठान के लिए चुने गए हैं। आध्यात्मिक गहराई से सोंचे तो वास्तव में ये बच्चे इन माताओं के गर्भ के बजाय आत्मा में समाकर पुकारते हैं, "माँ! आप बस मुझे ज़रा सा ढूँढने का प्रयास करें, मैं आपके आस-पास ही हूँ, आप अपना मन पक्का करें, मैं आपका बच्चा बनने के लिए तरस रहा/रही हूँ।
आप भी क्यों तरसती हो इतना, चलो हम दोनों एक दुसरे को अपना लें, ताकि हम सभी का जीवन सार्थक हो।" माँ के भीतर जब इन अनाथ बच्चों के आत्मा की पुकार गर्भ के शिशु की तरह हलचल करने लगे तो संयोग निश्चित है। फिर निश्चित ही अनुकरणीय उदाहरण हमारे समक्ष होंगे।
- शशि दीप
विचारक/लेखिका, समाज सेवी
मुंबई, महाराष्ट्र