Loading...

आनंद मुक्ती का


बहुत दिनों के बंधनों के बाद,
कल खुली हवा, खुले आसमां
के नीचे, प्रकृति के सानिध्य का
लिया मधुर मीठा स्वाद।

पास के बगीचे की
हरी भरी, कोमल दूब,
हरे भरेवृक्षों की सुकोमल
पत्तीयों का खुशी से लहराना, मुस्काना,
पौधों वृक्षों पर खिलते पुष्पों, सुमनों का ,
गले मिलना हर्षाना,
पक्षियों का कलरव, चहचहाअट
और मचाना धूम
दे गया मन को आनंद
खूsssब सुकून।

समझा गया,
खुली हवा, खुले आसमां,
प्रकृति  के सानिध्य, औ
बंधन, मुक्ती के सूत्र।


- प्रभा मेहता

नागपुर (महाराष्ट्र)

काव्य 2391622584750909465
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list