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व्यंग्य का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए : दिलीप तेतरवे


व्यंग्यधारा की साठवीं ऑनलाइन वीडियो गोष्ठी का आयोजन

नागपुर। व्यंग्य का लक्ष्य यानी व्यंग्य किस पर करना है यह स्पष्ट होना चाहिए। यह बात रांची के व्यंग्यकार व पत्रकार श्री दिलीप तेतरवे ने व्यंग्यधारा की साठवीं (60वीं) ऑनलाइन वीडियो गोष्ठी में कही। व्यंग्यधारा की ओर से "इस माह के व्यंग्य" श्रृंखला में रविवार को ऑनलाइन वीडियो गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

गोष्ठी में विशिष्ट वक्ता श्री तेतरवे, अतिथि वक्ता कोटा के व्यंग्यकार आलोचक व कवि डा. अतुल चतुर्वेदी जी, उज्जैन के व्यंग्यकार व कवि श्री हरीशकुमार सिंह जी तथा विशिष्ट वक्ता जबलपुर के वरिष्ठ व्यंग्यकार व कहानीकार डा. कुंदन सिंह परिहार जी ने जून माह की चयनित रचनाओं पर बातचीत की।

दिलीप तेतरवे ने कहा कि व्यंग्य रचना गढ़ने की चीज नहीं है, स्वत: स्फूर्त होनी चाहिए। अखबारों में बंधन में लिखी गई रचना रचनात्मक कृति नहीं होती। व्यंग्य का मनोरंजन तत्व अगर नहीं है तो वह व्यंग्य नहीं है। व्यंग्य का मनोरंजन तत्व भिन्न होता है। 

उन्होंने मुकेश जोशी के व्यंग्य ‘शोक सभा और शोकाकुल जी' की समीक्षा करते हुए कहा कि मनोरंजन के प्रयास में व्यंग्य का लक्ष्य स्पष्ट नहीं है। किसी के प्रति शोक प्रकट करना अनुचित कैसे हो सकता है शोकाकुल व्यंग्यबाण के काबिल नहीं। 

उन्होंने तीरथसिंह खरबंदा के व्यंग्य "आभासी दुनिया की गौरव गाथा" पर चर्चा करते हुए कहा कि इस व्यंग्य का लक्ष्य स्पष्ट है। आभासी दुनिया के कल्पनालोक में खोए रहने वाले लोगों पर कटाक्ष किया गया है। कल्पनालोक में भी यथार्थ होना चाहिए।

गोष्ठी में विमर्श की शुरुआत करते हुए हरीश कुमार सिंह ने कहा कि व्यंग्यकार अपने समाज के शोषित और दमित की बात कहता है। उन्होंने ए. जयजीेत के व्यंग्य ‘सत्ता का हाथी और छह आधुनिक अंधे' व्यंग्य की समीक्षा करते हुए कहा कि इस व्यंग्य में समकालीन राजनीतिक परिस्थितियों की गहराई से चीरफाड़ की गई है। 

वर्तमान सत्ता के मदमस्त हाथी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों पर कटाक्ष किया गया है। यह एक संपूर्ण व्यंग्य रचना है। विवेक रंजन श्रीवास्तव के व्यंग्य ‘व्यंग्यापलेक्स ट्वेंटी' पर चर्चा करते हुए कहा कि यह व्यंग्य आम आदमी के मनोविज्ञान को व्यक्त करता है। सहज और सरल भाषा के इस व्यंग्य में दवाइयों, कारों तथा अन्य चीजों के अजीबोगरीब नाम पर कटाक्ष किया गया है। यह व्यंग्य पाठक से सीधे जुड़ता है।

डा. कुंदन सिंह परिहार ने अनुज खरे के व्यंग्य ‘निरीहता का रोना' पर बात करते हुए कहा कि यह व्यंग्य नए दृष्टिकोण से लिखा गया है। इसमें आम आदमी की मजबूरी, हताशा, निराशा को रेखांकित किया गया है। खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने वाला आदमी निरीह होकर बिखर गया है। निकृष्टता की ओर बढ़ता जा रहा है। मनुष्यता की गरिमा गिरती जा रही है। उन्होंने पिलकेंद्र अरोरा के व्यंग्य ‘उद्घाटन एक निजी अस्पताल का’ की चर्चा करते हुए कहा कि कोरोना काल में मंदी से पीड़ित होटल व्यवसायी द्वारा होटल को लाभ के लिए अस्पताल में बदलने पर कटाक्ष किया गया है।

डा.अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्यकार का काम विसंगतियों की पड़ताल ही नहीं, बल्कि छिपे तथ्यों को भी उजागर करना है। उन्होंने श्रवणकुमार उर्मलिया के व्यंग्य ‘मौत के रोजगार का चलने दो कारोबार' चलने दो’ की चर्चा करते हुए कहा कि यह व्यंग्य चिकित्सा व्यवस्था पर बाजारवाद का लगा ग्रहण पर केंद्रित यह सधी हुई रचना है। यथार्थ और कल्पना पर आधारित प्रभावशाली व्यंग्य में गहरी व्यंजना है। भाषा सटीक है। 

उन्होंने आशीष दशोत्तर के व्यंग्य ‘सांसों की जरूरत है ऐसे’ को गहरी संवेदना और करुणा मिश्रित व्यंग्य निरूपित किया। व्यंग्य में पेड़ों का मानवीकरण कर बताया गया है कि लोकतंत्र में यदि आप संगठित नहीं है तो आपकी बातों को कोई सुनने वाला नहीं है। इसमें उपभोक्तावादी संस्कृति पर प्रहार किया गया है। व्यंग्य का अंत काफी मार्मिक है कि सबको सांसें देने वाले पेड़ों की सांसें उखड़ रही हैं। 
चर्चा को आगे बढ़ातेे हुए हरि जोशी (भोपाल) ने कहा कि व्यंग्यकार का दायित्व है कि वह समाज में जागृति लाएं। रेणु देवपुरा (राजस्थान) ने कहा कि गोष्ठी में यह सीखने को मिला कि व्यंग्य में क्या तत्व होने चाहिए। 

किशोर अग्रवाल(रायपुर) ने व्यंग्यधारा समूह को व्यंग्य की पाठशाला बताते हुए कहा कि व्यंग्य की समझ बढ़ने में मदद मिलती है। अनूप शुक्ल (शाहजहांपुर), ब्रजेश कानूनगो, टीकाराम साहू ‘आजाद’ (नागपुर), जयप्रकाश विलक्षण(दिल्ली) ने भी अपने विचार व्यक्त किए।  

संचालन करते हुए श्री रमेश सैनी (जबलपुर) ने कहा कि उपभोक्तावाद और बाजारवाद के दबाव तथा राजनीति और समाज में चारित्रिक विचलन के बीच व्यंग्यकार को ईमानदारी से लेखन करना चाहिए। व्यंग्य आलोचक व कार्यक्रम के संयोजक श्री डा. रमेश तिवारी (दिल्ली) ने कहा कि व्यंग्यधारा समूह द्वारा कार्यक्रमों को बेहतर बनाने के लिए निरंतर नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। व्यंग्य के कोण बढ़ रहे हैं। आभार प्रदर्शन डा. महेन्द्र सिंह ठाकुर (रायपुर) ने किया।
 
गोष्ठी में श्री मधु आचार्य ‘आशावादी', सुनील जैन राही (दिल्ली), राजशेखर चौबे (रायपुर), कुमार सुरेश (भोपाल), श्रीमती स्नेहलता पाठक (रायपुर), वेदप्रकाश भारद्वाज (गाजियाबाद), बुलाकी शर्मा (बीकानेर)जगदीश ज्वलंत, संजय पुरोहित (बीकानेर), श्रीमती वीना सिंह (लखनऊ),  श्रीमती अल्का अग्रवाल सिग्तिया (मुम्बई ), बलदेव त्रिपाठी (लखनऊ,), मुकेश राठौड़ (भीकमगाँव मप्र), विवेकरंजन श्रीवास्तव (जबलपुर), प्रदीप उपाध्याय (देवास), वीरेन्द्र सरल (धमतरी), सौरभ तिवारी,(दिल्ली) सूर्यदीप कुशवाह, यतीश कुमार , आशा जैन, आत्माराम भाटी ( बीकानेर), जवाहर चौधरी,(इंदौर) डा. सुरेश कुमार ‘उरतृप्त’(हैदराबाद) अनुज खरे(भोपाल), चेतना भाटी, आशा जैन आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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