धर्म समाज, राजनीति का संतुलन है
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महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा सभा मे परिचर्चा
नागपुर। महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा सभा के चिंतन कक्ष में 20 नवम्बर को शाम 6 बजे समाज, राजनीति में धर्म विषय पर परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए डा शशि वर्धन शर्मा ने कहा - रावण ने अपनी संस्कृति चलाई, याने व्यक्ति परिवार समाज देश को धर्म बनाता है।
कलाकार व मुजिसियन विजय नायडू पानी जैसे ऊपर से नीचे बहता है वैसे ही धर्म भी प्रवृति है। कवि कृष्ण कुमार द्विवेदी ने बताया परिवारों के समूह से बनता है, धर्म अंकुश लाता है।
विजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा धर्म एक ही होना चाहिए समाज को उसपर चलना चाहिए ना की स्वयं को हीरो या विलेन सा निरूपित करना चाहिए।साहित्यकार नरेंद्र परिहार का मानना था की संस्कृति का मूल कर्म होना चाहिए, धर्म इंसानियत को मूल में रखे तब राजनीति राह दिखा सकेगी। समाज, राजनीति में धर्म आज अस्त्र बन गया है जो कट्टरता को पनपा रहा है। धर्म संतुलन लाता है, अगर भय को दूर रखें।
कार्यक्रम के संयोजक डा प्रकाश काशिव ने प्रस्तावना में विषय को खोलते हुए कहा धर्म का मुख्य अर्थ नैतिक कर्तव्य होता है। धर्म का राजनीति व समाज में समान अवसर होता है। संचालन काशिव ने किया और आभार कृष्ण कुमार द्विवेदी ने माना।