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पर्यावरण...


मत करो प्रकृति पर प्रहार
तपती धूप में तप रही वसुंधरा
कर रही हर किसी से गुहार।
ए मानव क्यों तू जंगल काट रहा।
मानवता क्यों दम तोड़ रही है।
अपने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति से
कर रही है खिलवाड़।
जाग जाओ बचा लो पर्यावरण
सूख रही है धरती मांग रही है  जल
और मिट्टी।
शुद्ध हवा मिलती हमें पेड़ पौधों से
उसे यूं ना बर्बाद करो।
संकल्प लो हर किसी को पेड़
लगाना है।
पर्यावरण हमें बचाना है चारों तरफ
हरियाली होगी तभी तो जीवन में
खुशियांली  होगी।
सजा दो वसुंधरा को चारों तरफ़ 
हरियाली से।
हरी-भरी हो धरती हमारी यह
सोच जगाना है।
पर्यावरण हमें बचाना।
हर जगह हो आम पीपल बरगदन नीम
खुली हवा में सांस लेना है जरूरी।
प्रदूषण से फैल रही है कई बीमारी
मानव का दम घुट रहा है जिसका
इलाज है हरी भरी हरियाली।


- सविता शर्मा, मुंबई
काव्य 6691980118485357968
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