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हिंददेश परिवार छत्तीसगढ़ इकाई पर 'मृत्योर्मामृतं गमय'


नागपुर। हिंददेश परिवार छत्तीसगढ़ इकाई पर भारतीय संस्कृति को स्मृति पटल पर पुनः अंकित करने के लिए एक नया उपक्रम 'मृत्योर्मामृतं गमय' 1 जून से प्रारम्भ हुआ जिसका अर्थ है कि 'हे ईश्वर! मृत्यु नहीं, मुझे अमरता की ओर ले चलो।' इस उपक्रम का आयोजन हिंददेश परिवार छत्तीसगढ़ इकाई की अध्यक्षा रंजना श्रीवास्तव ने आध्यात्मिक, दार्शनिक, नैतिक और सामाजिक सरोकार को ध्यान में रखकर किया।

कहते हैं कि जीवन में ऐसा कुछ किया जाना चाहिए कि मृत्यु के पश्चात् भी इंसान अपने कर्मों के द्वारा जीवित रह सके। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो अपने साथ तीन चीजें लाता है -

1.संचित कर्म 2.स्मृति 3.जागृति और साथ ही लाता है सूक्ष्म शरीर। मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह ही नष्ट होती है, जबकि सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है। जब व्यक्ति मरता है तो इन्हीं संचित कर्मों में इस जन्म के कर्म भी एकत्रित करके ले जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने पिछले और इस जन्म की कुछ खास स्मृतियाँ संग्रहीत रहती हैं। मनुष्य के भीतर जागृति का स्तर भी  उसकी जीवन शैली, संवेदना और सोच पर निर्भर करता है। जागृति का प्रथम स्तर बुद्धि और द्वितीय स्तर विवेक और तृ‍तीय स्तर आत्मावान् होने में है।
शास्त्रों में लिखा है कि -
             मृतं  शरीरम् उत्सृज्य काष्टलोष्टसमं  जना:।
             मुहूर्तमिव रोदित्वा ततोयान्ति पराङ्मुखा:।।
             तै: तत् शरीरम् उत्सृष्टं  धर्म  एकोनुगच्छति।
             तस्माद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य: सदा नृभि:।।


इसका व्यावहारिक अर्थ यही है कि मृत्यु होने पर व्यक्ति के सगे-संबंधी भी उसकी मृत देह से कुछ समय में ही मोह या भावना छोड़ देते हैं और अंतिम संस्कार कर चले जाते हैं, किन्तु इस समय 'धर्म' ही एकमात्र ऐसा साथी होता है, जो उसके साथ जाता है।
अतः संसार के समस्त जीवों में नैतिकता और वैचारिकता में वृद्धि होनी चाहिए जिसके लिए श्रेष्ठ वातावरण का निर्माण करने हेतु 'हिंददेश परिवार छत्तीसगढ़ इकाई' ने बीड़ा उठाया है और ऐसी उपजाऊ भूमि तैयार करने की कोशिश की है जिस पर अच्छाइयों की फसल लहलहा उठे। साहित्य साधकों तक संदेश पहुँचाया है कि वे लेखन के माध्यम से अपने उत्कृष्ट आध्यात्मिक विचार प्रस्तुत करें।

लेखन के विषयों में मौन की आध्यात्मिक गूँज, साधना संयम और सिद्धि, प्रबल इच्छा शक्ति, प्रसन्नता स्वभाव का अंग हो, असफलता का अस्तित्व ही नहीं, अहं का विसर्जन, अंतरात्मा की आवाज, अशांति का उन्मूलन, अनिवार्यताएँ बदलनी होंगी, स्वयं के प्रति अनभिज्ञता, शिक्षा में क्रान्ति आवश्यक, स्वच्छता एक स्वस्थ आदत, अनाज की बरबादी रोकनी होगी, दिनभर कॉल - मानसिक फॉल, विश्वास की नींव, ऊर्जा और उपभोक्ता, साइलेंट एब्यूज़, कठिनाइयाँ परिष्कार का स्वर्णिम अवसर, जातिवाद का गहराता संकट, कर्म का सिद्धान्त, निर्भयता, मानसिक स्वास्थ्य, अनिद्रा का मंडराता वैश्विक संकट, बढ़ता प्रदूषण घटता जनजीवन, मिट्टी को मिट्टी रहने दो, एक पुरस्कार ज़िक्र बार बार, जश्न या बढ़ता शोर, स्वयं को माफ करना सीखें, साहित्य और साहित्यकार, अपना विकास सबका विकास, मानसिक शुचिता स्वस्थ सामाजिकता, आत्ममुग्धता का आवरण, कबीर फिर आओ ना!!... इत्यादि का समावेश किया गया है।
'छत्तीसगढ़ इकाई के पदाधिकारियों में' उपाध्यक्षा अंजू भूटानी, प्रभारी हिमद्युति श्रीवास्तव, सह-सचिव तनवीर ख़ान, अधीक्षक गौरी कनोजे, कार्यकारिणी समन्वयक विद्या चौहान, प्रबन्धन समन्वयक अनुजा दुबे, सह-प्रभारी माधुरी मिश्रा, अलंकरण समन्वयक नेहा किटुकले, संयोजिका प्रेम सिंह, सह-संयोजिका लीना शर्मा, पंचपरमेश्वरी अलका श्रीवास्तव इत्यादि ने सहर्ष सहयोग देकर उपक्रम को गति प्रदान की।

'हिंददेश परिवार के केन्द्रीय प्रबन्धन' के अधिकारियों में संस्थापिका और अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ. अर्चना पाण्डेय 'अर्चि', उपाध्यक्षा मधुमिता 'सृष्टि', महासचिव कुसुम शर्मा 'कमल' और महाप्रभारी डॉ. मधुकर राव लारोकर 'मधुर' ने अपना पूरा सहयोग दिया।

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