फ़लसफ़ा ज़िदगी का
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मानिंद बुलबुले के,
खूबसूरत भी है ,
ऐ ज़िंदगी तू इतराती बहुत है।
लौट आया हूँ खाली हाथ,
जो निकला था घर से,
ऐ खुशी, तू मंहगी बहुत है।
तेरे वादों पे ऐतबार कुछ यूं कर लिया,
दिले-जाना तू झूठा बहुत है।
बड़ी भीड़ है, ऐ अदा,
ज़रा संभलकर चल,
ये सयासी रंग है,
पक्का बहुत है।
- तौकीर फातमा 'अदा'
कटनी, मध्य प्रदेश