ऐ ज़िंदगी...
https://www.zeromilepress.com/2022/06/blog-post_23.html
तू शरारती है बहुत,
निहायत खुबसुरत भी है,
ना जाने क्या-क्या गुल खिलाती है,
ज़िंदगी,
तू बहुत खुबसुरत है।
तुझसे गले मिलूं
या दूर ही रहूं,
तू है इंद्रधनुष सी
बेहद दुर्लभ
लगता है नजदीक है,
बस छू लूं
पर है दूर भी बहुत,
छिपा छुपी खेलती है,
सच ज़िंदगी,
बहुत प्यारी सी है तू।
सोचता हूं
तुझे सामने बिठाकर
बस प्यार करूं,
समय के धागे को
धीरज के फूलों में पिरोकर तुझे सजदे करूं,
जिंदगी आ तुझे प्यार करूं,
सच ज़िंदगी
बहुत ही खुबसुरत है तू।।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर, महाराष्ट्र