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मनुष्य की जिज्ञासा का प्रमाण है शोध - प्रो. डेहरिया



नागपुर। मनुष्य की जिज्ञासा का परिचायक है शोध। शोध  के कारण ही मनुष्य ज्ञान -विज्ञान की विभिन्न उपलब्धियों से परिचित हो सका है। 

मानव सभ्यता के विकास में शोध की महती भूमिका रही है।' यह बात अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. खेमसिंह डहेरिया ने 'हिंदी में शोध' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कही। 

वे हिंदी विभाग एवं आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ,राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि भाषा और साहित्य में शोध मानव सभ्यता और संस्कृति की विकास यात्रा पर प्रकाश डालता है। 

इसके माध्यम से मानव समाज की उन चर्चाओं और चिंताओं पर विचार संभव हो पाता है,जो प्रायः अदृश्य रहती हैं। हिंदी में शोध साहित्य और भाषा दोनों ही दृष्टि से आवश्यक और उपयोगी है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के प्र -कुलपति  प्रो. संजय दुधे ने कहा कि शोध मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है ।शोधार्थी को अध्ययनशील और जिज्ञासु होना चाहिए। 

शोधकर्ता को तथ्य और सत्य की परख बहुत स्पष्ट होनी चाहिए। अपने स्वागत उद्बोधन में आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ की निदेशक प्रो. स्मिता आचार्य ने शोध कार्यशाला की संकल्पना रखते हुए यह अपेक्षा व्यक्त की कि शोधार्थी इस अवसर का लाभ उठाएंगे। 

इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए मानविकी संकाय के सह-अधिष्ठाता प्रो. शामराव कोरेटी ने कहा कि हमें शोध की गुणवत्ता पर बल देना चाहिए । शोध की सामाजिक प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए विषय चयन किया जाना चाहिए।

प्रमुख वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. पूरनचंद टंडन ने अपने व्याख्यान में शोध में प्रामाणिकता और सामग्री संकलन की प्रक्रिया को लेकर चर्चा की । उन्होंने कहा कि शोध की पहली शर्त है

प्रामाणिकता। शोध की प्रामाणिकता उसकी सामग्री पर तय होती है, इसलिए किसी भी विषय पर शोध करते समय यथातथ्य सामग्री की प्रामाणिकता पर विचार किया जाना चाहिए । प्रामाणिक तथ्यों के अभाव में शोध का उद्देश्य निरर्थक हो जाता है। 

शोध में ऑनलाइन माध्यमों के प्रयोग पर प्रकाश डालते हुए माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक, भाषा तकनीकी विशेषज्ञ श्री बालेंदु शर्मा 'दाधीच' ने कहा कि बदलते समय के अनुसार ऑनलाइन सामग्री के चयन पर सतर्कता बरतने की जरूरत है। उन्होंने ऑनलाइन सामग्री के उपयोग की प्रक्रिया पर सविस्तार चर्चा की।  

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेंद्र प्रताप सिंह ने शोध की संकल्पना स्पष्ट करते हुए साहित्यिक शोध में आने वाली समस्याओं के समाधान पर प्रकाश डाला। 

उन्होंने कहा कि शोध 'थीसिस' लिखना मात्र नहीं है, वह शोध प्रक्रिया का एक पक्ष है, वास्तव में शोध ज्ञान के नए आयाम का निदर्शन है । जिस शोध कार्य से ज्ञान के भंडार में वृद्धि नहीं हो, उसे शोध नहीं कहा जा सकता। 

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संतोष गिरहे ने दिया और संचालन डॉ. सुमित सिंह एवं जागृति सिंह ने किया । इस राष्ट्रीय कार्यशाला में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी भाग ले रहे हैं।
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