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नागरी लिपि से समृद्ध और सशक्त हुई हिंदी : डॉ. हरिसिंह पाल


 
नागपुर/पुणे। नागरी लिपि हिंदी भाषा का रथ है, जिस पर सवार होकर हिंदी भाषा देश-देशांतर में अपना डंका बजा रही है। संविधान की अष्टम अनुसूची की 22 भाषाओं में से 12 भाषाओं की लिपि नागरी ही है। 

वैज्ञानिक एवं सुसंगत लिपि होने के कारण विश्व की किसी भी भाषा को लिपिबद्ध करने में नागरी लिपि समर्थ एवं सशक्त लिपि है। नागरी लिपि से हिंदी भाषा समृद्ध और सशक्त हुई है| उक्त विचार नागरी लिपि परिषद के महामंत्री एवं भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. हरिसिंह पाल ने अध्ययन एवं अनुसंधान पीठ, दिल्ली द्वारा विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष में ‘हिंदी के विकास में नागरी लिपि की भूमिका’, विषयक अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में प्रकट किए। देश-विदेश में नागरी लिपि का प्रचार प्रसार करने वाले नागरी लिपि विशेषज्ञ डॉ. पाल ने अपने 1 घंटे के  व्याख्यान में नागरी लिपि के विविध पक्षों और संविधान में नागरी की स्थिति एवं नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की गतिविधियों पर विस्तार से तथ्यपरक प्रकाश डाला।

चेन्नई से जुड़ीं नागरी लिपि परिषद की तमिलनाडु शाखा की प्रभारी डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने अपने वक्तव्य में कहा कि तमिलनाडु में नागरी लिपि और हिंदी भाषा का कोई विरोध नहीं है, यह सब राजनैतिक प्रचार है। आज भी तमिलनाडु में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की परीक्षाओं में लाखों विद्यार्थी प्रतिवर्ष शामिल होते हैं। राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होने के लिए सभी हिंदी भाषा को सशक्त माध्यम मानते हैं। यहां तक कि यहां पर हिंदी कोचिंग सेंटर भी चलते हैं।

इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बाली, इंडोनेशिया से जुड़े हिंदी विद्वान श्री धर्मयश ने विश्व में हिंदी के बढ़ते कदमों पर प्रकाश डाला और बताया कि इंडोनेशिया में प्रत्येक समारोह का शुभारंभ वैदिक मंत्रों से ही होता है| संगोष्ठी के अध्यक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री कृपाशंकर ने डॉ. पाल के विद्वता पूर्ण व्याख्यान की भूरि-भूरि  प्रशंसा करते हुए कहा कि देश-विदेश में ऐसे ही नागरी हिन्दी प्रचारकों की आवश्यकता है। तभी हम सही अर्थों में विश्व गुरु बन पाएंगे। 

संगोष्ठी की संयोजक एवं अतिथि डॉ. माला मिश्रा ने संचालन किया और मुख्य वक्ता डॉ. पाल का परिचय प्रस्तुत किया। पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक डॉ. राकेश कुमार दुबे ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. हरिसिंह पाल की नागरी सेवा को गौरवान्वित करते हुए उन्हें ‘नागरी ऋषि’ बताया। संगोष्ठी में देश-विदेश के अनेक नागरी हिंदी सेवी बड़ी संख्या में जुड़े | यह पहली बार है कि विश्व हिंदी दिवस पर नागरी लिपि की भूमिका पर सकारात्मक विमर्श हुआ है।
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