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कविता के भावों से जीवन शैली सकारात्मक हो सकती है : माणक सेठिया



साहित्यिकी में सरस कविताओं की प्रस्तुति

नागपुर। कवियों ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर कविताएँ पढ़ी। जो अत्यंत रोचक मार्मिक व प्रभावपूर्ण थीं। ऐसी कविताएं समाज के लिए हितकारी हैं। अगर समाज कविता के इन भावो को जीवन शैली में उतारें तो अवश्य ही लाभ पा सकता है। जीवन शैली सकारात्मक हो सकती है उक्त विचार विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपक्रम साहित्यिकी के अन्तर्गत कवि सम्मेलन में जीवदया मंडल नागपुर के सचिव माणक सेठिया ने व्यक्त किए। संयोजक डॉ विनोद नायक ने कहा कि जीवदया का आशय केवल गोसेवा तक ही निहित नहीं है बल्कि सेठिया जी की तरह पशु-पक्षी, जीव-जंतु व पेड़-पौधों सभी के लिए एक समान होना चाहिए। कवि सम्मेलन के प्रमुख अतिथि मानक सेठिया व अध्यक्षता डॉ. राम मुळे ने की। अतिथि स्वागत संयोजक डॉ विनोद नायक व सहसंयोजक शादाब अंजुम ने किया। संचालन संयोजक प्रा. आदेश जैन ने किया।

सर्वप्रथम डॉ भोला सरवर ने कविता 'दिल में है जहांने गम आंखों में उदासी है, बस जख्म छुपाने को खुश रंग लिबासी है' प्रस्तुत की। डॉ राम मुले ने कविता 'निष्पर्ण वृक्षों की छटा जंगल में छाई है, लो अब सुहानी ऋतु यहाँ पतझड़ की आई है' पढ़ी। तेजिंदर सिंह ने कविता 'चालाक होना बुद्धिमान नहीं होता, यहां कोई किसी पर महरबान नहीं होता' प्रस्तुत की। मजीद बेग मुगल ने कविता 'गांधी आपके विचारों पे चल रहा देश है, देश के गद्दारों ने पहना अब नया वेश है' प्रस्तुत की।

सुरेखा करें ने कविता 'मेरी तुम्हारी दास्तां, हर आदमी कहता गया, मंजिलों का है पता न, रास्ता बढ़ता गया' प्रस्तुत की। माधुरी राऊलकर ने कविता 'धूप छायी तो सावन भूल जाता है, घर याद रहता आंगन भूल जाता है' प्रस्तुत की। डॉक्टर विजय श्रीवास्तव ने कविता 'ये सिनेमा की दुनिया भी अजीब है, जितनी अजीब दिल के उतने ही करीब है, कभी हंसाती है कभी रुलाती है, कभी नचाती है कभी सपने दिखाती है, लेकिन मन को हमेशा तड़पाती है' प्रस्तुत की। शादाब अंजुम ने रचना 'दीप मिट्टी का बुझा रखा है, बल्ब बिजली का जला रखा है' प्रस्तुत की।                               

डॉ विनोद नायक ने कविता 'प्रेम के प्रीत के ढ़ाई आखर सही, जिंदगी में भला और क्या चाहिए, मां ने माथे को चुमा तो ऐसा लगा, ताज इससे बड़ा और क्या चाहिए' प्रस्तुत की। रीमा दीवान चड्ढा ने कविता स्वार्थ के रंग लिए, ढूँढें हैं लोग, सुख के मौसम.. जाने कितने मौसम बीते, फागुनी नेह, आँखे बिछाये, बाँहे पसारे, बैठा है समय के द्वार पर प्रस्तुत की।

कवि अमिता शाह, नीलीमा गुप्ता, हेमलता मिश्र मानवी, गुलाम मोहम्मद खान आलम, संतोष बुधराजा, देवयानी बनर्जी, उमर अली अनवर, माया शर्मा नटखटी व चंद्रकला भरतिया, ने अपनी कविताओं से मंत्रमुग्ध कर दिया।
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