पराया
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पागलखाने के अधिक्षक डॉ.सुमन ने कहा- हम निरंतर प्रयत्न कर रहे है.पर अभी तक तो कोई पता नही चल सका. यह सुनकर 75 वषी॔य देवधर अपने बॅरक की ओर जाने लगा. डॉ.सुमन ने अपने सहायक डॉ. हरिप्रसाद से पूछा- इस वृद्ध देवधर का मामला क्या है?
डॉ. हरिप्रसाद कहना लगे- "आपको यहाँ आये सिफ॔ महिना भर हुआ है. मुझे अच्छी तरह याद है, आज से सात महिने पहले एक बारिश भरी संध्या को एक दंपति अपने रिश्तेदारों के साथ एक वृद्ध व्यक्ति को ले लाये और कहने लगे.... डॉ.सुमन ने बीच में ही पूछ लिया, "क्या? वह देवधर ही थे "जी हां,सर... वे कहने लगे यह वृद्ध पागल हो गया है, इसे पागल खाने में भति॔ करवाना है. रिश्तेदारों की मदद और कुछ डॉक्टरों की सांठ गांठ से देवधर का बेटा विजय अपने पिता को जोकि मानसिक रूप से संतुलित व्यक्ति थे को जबरन भर्ती करवा दिया. बाद मे ऐसा सुनने में आया कि वृद्ध देवधर अपनी सारी चल अचल संपत्ति अपने इकलौते बेटे विजय के नाम कर दी थी.
देवधर को भूलने की आदत थी. जिसके कारण कभी कभी जाने अंजाने में वह कुछ आपत्ति जनक हरकतें कर दिया करते और कभी किसी को पहचान नहीं पाते, जिसके चलते बहू और बेटा परेशान हो जाया करते. ऐसा लगता है कि विजय सारी संपत्ति बेचकर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपना शहर छोड़ कर ना जाने कहां लुप्त हो गया. इसकी किसी को भी आज तक कोई ख़बर नहीं, यह सब सुनकर डॉ .सुमन की आँखें भर आयी.कुछ समय पश्चात उन्होंने कहा- मेरा विचार है कि वृध्द देवधर को पास के किसी वृद्धाश्रम में भति॔ करवा देना चाहिए ताकि वहाँ इनकी देखभाल अच्छी तरह से हो सके, यह सुनकर सभी ने इस पर अपनी हामी भरी. दूसरे दिन देवधर को वृद्धाश्रम भति॔ करवा दिया गया. औपचारिकता पूण॔ करने के बाद जब डॉ. सुमन वृद्धाश्रम से वापस जाने लगे तो दूर से वृद्ध देवधर उन्हें जाते हुए देखकर मन ही मन सोचने लगा- "अपनों से तो पराया अच्छा.... और किसी की प्रतिक्षा में उसकी आँखें शून्य की ओर ठहर गयी.
- मोहम्मद जिलानी, चंद्रपुर (महाराष्ट्र)