महादेवी वर्मा की रचनाओं की युगों-युगों तक प्रासंगिकता रहेगी : सुनील कुंतल
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नागपुर। छायावादी काव्य की प्रमुख स्तंभ एवं वेदना की साधिका महादेवी वर्मा अपनी रचनाओं के संदर्भ में 'आधुनिक मीरा' के रूप में पहचानी जाती है।अतः उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता युगों-युगों तक रहेगी। इस आशय का प्रतिपादन सुनील कुंतल, केंद्रीय अध्यक्ष, भारत उत्थान न्यास,कानपुर, उत्तर प्रदेश ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान,प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'छायावाद की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा एवं उनकी रचनाएं' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी 181 गोष्ठी में वे वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। सुनील कुंतल ने आगे कहा कि महादेवी वर्मा ने अपनी विषम परिस्थितियों में सपनों को मरने नहीं दिया।ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा पाने हेतु जब महादेवी ने राष्ट्रपिता गांधी जी से परामर्श लिया,तब गांधी जी ने कहा कि हमारी लड़ाई विदेशी हुकूमत से चल रही है। इस स्थिति में तुम्हारा विदेश जाना ठीक नहीं है। तुम्हें यहीं रहकर अपनी मातृभूमि और मातृभाषा के लिए काम करना चाहिए। परिणामत: महादेवी ने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और महिलाओं को केंद्र में रखकर उन्होंने अनेक कार्य किये।
श्रीमती प्रमिला अशोक कौशिक, पूर्व अध्यापिका, सैंट मार्क्स सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल, दिल्ली ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि महादेवी वर्मा का बहिर्मुखी व्यक्तित्व जितना सौम्य, मिलनसार और संवेदनशील है अंतर्मुखी व्यक्तित्व उतना ही शांत, एकांत पूर्ण और करुण रहा है। पशु पक्षियों के प्रति भी उनके मन में अथाह ममता रही। छायावाद में झलकता महादेवी का रहस्यवाद विराट सत्ता के अलौकिक सौंदर्य से प्रतिबिंबित होना प्रतीत् होता है। महादेवी की संगीत और चित्रकला में विशेष रूचि थी। 13- 14 वर्ष की आयु में ही उन्होंने कविता लिखना आरंभ कर दिया था। महादेवी ने प्रकृति को जड़ ना मानकर चेतन स्वरूप प्रदान किया। वह अलौकिक प्रणय की उत्कृष्ट गायिका भी रही है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सीमा वर्मा ने कहा कि महादेवी एक ऐसी साहित्यकार हैं, जिन्होंने साधारण सा विषय उठाकर भी गद्य हो या पद्य व्यष्टि में समाष्टि को समाहित कर लिया है। महिषी लेखिका महादेवी वर्मा एक कवयित्री के रूप में जितनी शक्तिशाली अभिव्यक्ति देने में समर्थ है, उतना ही सशक्त उनका गद्य लेखन है। महादेवी की सूक्ति शैली के उदाहरण आज भी मायने रखते हैं। महादेवी के गद्य में भी काव्य का सा आनंद आता है। क्योंकि महादेवी वर्मा का कवि हृदय उनके गद्य लेखन में सहज ही अवतरित हो जाता है। महादेवी वर्मा के साहित्यिक व्यक्तित्व की छाप गद्य और पद्य दोनों में है। परंतु दोनों का मूल एक ही है।
डॉ. शंभू प्रभु देसाई, पूर्व उप महाप्रबंधक, गोवा शिपयार्ड लि. रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, फोन्डा,गोवा ने अपने मंतव्य में कहा कि महादेवी वर्मा ने गद्य और पद्य दोनों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनकी कविता में अनुभूति की प्रधानता तो गद्य में गंभीर चिंतन का पुट है।
गोष्ठी के अध्यक्षीय समापन में प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र, अध्यक्ष विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने अपने वक्तव्य में कहा कि महादेवी का काव्य रचनाकाल प्रधान रूप से सन 1924 से 1942 तक है। उनकी कविताओं में आरंभ से ही विस्मय, जिज्ञासा, व्यथा और आध्यात्मिकता के भाव मिलते हैं। उनके सभी गीतों में अनुभूति और विचार का समन्वय है। उनके काव्य पर बुद्ध का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। महादेवी ने मध्यकाल की रहस्य भावना को नए युगबोध के अनुरूप ढाला है। उनका रहस्यवाद प्रतीकों और अभिव्यक्ति की सांकेतिकता से भरा है।
प्रारंभ में संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने प्रास्तविक उद्बोधन में संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से गोष्ठी का प्रारंभ हुआ।श्रीमती कृष्ण मणि श्री,मैसूर, कर्नाटक ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली,उत्तर प्रदेश ने किया। डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने गोष्ठी का संचालन तथा प्रा. मधु भम्भानी, नागपुर, महाराष्ट्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस गोष्ठी में डॉ. सैफुल इस्लाम, असम; उपमा व दीनबंधु आर्य,लखनऊ; रतिराम गढेवाल, सरस्वती वर्मा, ओंकार प्रसाद, छत्तीसगढ़; डॉ. इंद्र कुमारी, डॉ. देवीदास बामणे, प्रो.शहनाज शेख, प्रा. रोहिणी डावरे, महाराष्ट्र; डॉ नजमा बानो मलेक, गुजरात; सुनीता चौधरी, डॉ.प्रकाश, श्वेता मिश्र, डॉ. सुरेखा मंत्री,जयवीर सिंह, फरहत उन्निसा खान, मध्य प्रदेश; सुधीर सिंह, शिवम झा डॉ लक्ष्मी शंकर गौतम, रामचंद्र स्वामी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।