छत्तीसगढ़ की सामाजिक व सांस्कृतिक परंपराएं श्रृंखला के रूप में जुड़ी है : कान्हा कौशिक
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नागपुर/रायपुर। छत्तीसगढ़ सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टि से एक सघन व समृद्ध राज्य है, जिसकी सामाजिक व सांस्कृतिक परंपराएं एक श्रृंखला के रूप में जुड़ी प्रतीत होती है। इस आशय का प्रतिपादन श्री.कान्हा कौशिक, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की छत्तीसगढ़ इकाई की ओर से सोमवार दि.25 दिसंबर, 2023 को 'छत्तीसगढ़ की भाषा, संस्कृति और परंपराएं' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में वे उद्बोधन दे रहे थे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे,महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।
श्री कान्हा कौशिक ने आगे कहा कि सीतापति प्रभु रामचंद्र जी का मामा घर और धान का कटोरा के लिए प्रसिद्ध राज्य छत्तीसगढ़ की अपनी सांस्कृतिक परंपराएं आज भी स्थायी रूप से अस्तित्व में है। लगभग ढाई तीन करोड़ जनसंख्या वाले इस राज्य की 83% जनता ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है तथा शेष 17% जनमानस शहरी क्षेत्र में निवास करता है। यहां की छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का दर्जा प्राप्त है। छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ी भाषा अत्यंत सरल, सहज व रंजक है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में एकमात्र छत्तीसगढ़ी भाषा ही बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी को विकसित करने में अनेक साहित्यकारों का योगदान रहा है। पर्यटन की दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ राज्य अग्रक्रम पर है। बस्तर का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए श्री कान्हा कौशिक ने निम्नांकित पंक्तियों से सभी को मंत्र मुग्ध किया-
मोर छत्तीसगढ़ के माटी.. तंय भारत मां के सांटी.. मैं तोला नवानव माथा महतारी आती जाती।
डॉ अनसूया अग्रवाल, प्राचार्या, महाप्रभु वल्लभाचार्य शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि सन 2000 में स्थापित छत्तीसगढ़ राज्य का मुख्य व्यवसाय कृषि है । 'अतिथि देवो भव' की उक्ति छत्तीसगढ़ में चरितार्थ होती प्रतीत होती है,क्योंकि छत्तीसगढ़ की संस्कृति आतिथ्य में सबसे आगे हैं। यहाँ के लोकगीत, लोकनृत्य व लोक परंपराओं की अपनी स्वतंत्र विशेषता है। प्रो. डॉ. सुधीर शर्मा,अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भिलाई ,छत्तीसगढ़ ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य का गठन सांस्कृतिक रूप से हुआ है। अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण छत्तीसगढ़ राज्य विश्व स्तर पर बहु परिचित है। छत्तीसगढ़ी भाषा को भी पूरे विश्व में जाना जाता है। पिछले 23 वर्षों से छत्तीसगढ़ राज्य सांस्कृतिक रूप से पूर्णत:निर्भर है। यहां के सामाजिक कार्यकर्ता, नेता व राजनयिकों की एक विशेषता है - संस्कृति।
प्रो. शर्मा ने अपने मंतव्य में माधव सप्रे की कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' ,पदुमलाल पन्नालाल बक्षी , संत गुरु घासीदास का भी उल्लेख करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ के निवासी अत्यंत सरल व भोले हैं। अतः कहते हैं- 'छत्तीसगढ़िया, सबले बढ़िया।‘ प्रारंभ में गोष्ठी की प्रस्तावना में डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी,सचिव, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने कहा कि किसी भी देश या राज्य की संस्कृति उस देश या राज्य की अपनी स्वतंत्र पहचान होती है। छत्तीसगढ़ राज्य संस्कृति के मामले में बहुत समृद्ध है। यहां के निवासी मन से निर्मल व छल-कपट से दूर रहते हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों का धर्म के प्रति उदार दृष्टिकोण है। ‘भोजली’ जैसे लोक नृत्य में राज्य की संस्कृति के दर्शन होते हैं।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य की संपर्क भाषा छत्तीसगढ़ी हिंदी के निकट तथा उसकी लिपि देवनागरी है। छत्तीसगढ़ी भाषा का अपना समृद्ध साहित्य व व्याकरण है, जिसे भाषा के रूप में राज्य के लगभग 2 करोड़ जन प्रयोग करते हैं। छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिंदी की प्रमुख बोली है। एक दूसरे के हृदय को स्पर्श करने वाली छत्तीसगढ़ी भाषा राज्य की संपर्क भाषा है, जो अर्धमागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है। छत्तीसगढ़ी राज्य में जो साहित्य रचा गया है, जिसे लगभग 1000 वर्ष की परंपरा प्राप्त है। महाराष्ट्र राज्य की सीमा से अर्थात् नागपुर से सटकर छत्तीसगढ़ राज्य होने से छत्तीसगढ़ी भाषा पर मराठी का प्रभाव परिलक्षित होता है। अनेक मराठी शब्द छत्तीसगढ़ी भाषा में पाए जाते हैं, जैसे जेवन (जेवण) महतारी (म्हतारी) तथा जोहार जैसे अनेक शब्द छत्तीसगढ़ी में उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत और नृत्य का विशेष महत्व है।
गोष्ठी का सफल, सुंदर संचालन व नियंत्रण करते हुए संस्थान की छत्तीसगढ़ प्रभारी डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, सह प्राध्यापक, शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस शिक्षा महाविद्यालय, अभनपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य की अपनी संस्कृति है, जहां लोग अपने पारंपरिक रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते हुए सरल व सहज तरीके से जीने में विश्वास करते हैं। गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ । डॉ.सरस्वती वर्मा, महासमुंद, छत्तीसगढ़ में स्वागत उद्बोधन दिया। श्रीमती अनुरिमा शर्मा, रतिराम गढ़ेवाल तथा डॉ. देवीदास बामणे द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। इस गोष्ठी में पटल पर श्रीमती उपमा आर्य, दीन बंधु आर्य, प्रमिला कौशिक, प्रो.शहनाज शेख, प्रो.जहीरूद्दीन पठान, डॉ.अर्चना चतुर्वेदी, डॉ. वंदना अग्निहोत्री, रश्मि लहर सहित अनेक महानुभावों की सक्रिय उपस्थिति रही।