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नशे की बढ़ती प्रवृति : कारक, निदान और विशलेषण


आज जहाँ हम 21 वी सदी  मे जी रहे है, विश्व तकनिकी दृष्टि से सिमट कर एक परिवार के रूप में सिमट कर सामने आ गया है, विज्ञानं और तकनीक  की उन्नति के कारण हम विश्व  के किसी भी देश में बैठे अपनों से  विडियो कॉल के जरिये  ऐसे बात करते है मानो वो हमारे सामने ही बैठे हो। इस प्रगति में जहाँ ढ़ेरों अच्छाई हैं वहीं जैसे आप मनचाहे शिक्षा और करियर के क्षेत्र में  आगे बढ़ सकते है, भारत से ही आप विश्व  के किसी भी देश से डिग्री हासिल कर सकते हैं, बिज़नेस के लिए नेट मार्केटिंग के जरिये आप कहीं भी बिज़नेस कर  सकते हैं।

जहाँ प्रगति की दौड़ में हम आगे आ रहे वहीँ आधुनिकीकरण के बढ़ाते क्रेज और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हमारी युवा पीढ़ी, इस होड़ में, करिर्यर के स्ट्रेस ,परिवारों के बदले रूप एकल परिवार और संतान भी एक या दो होने के कारन आपसी सम्न्जस्य का आभाव हो गया है। माता पिता दोनों ही कामकाजी होने की अति व्यस्तता से देश के करण आधार टीवी टी आ पी दौड़ और सोशल प्लेटफॉर्म्स से नकारात्मक उर्जा ज्यादा ले रहे है। ज्यादातर बच्चों के सीरियल में ऐसा कुछ  खास होता नही जो बचपन को संस्कार और सकारात्मक  उर्जा से भर सके, उनके सामने परोसे जाते है ऐसे चरित्र जो पलक झपकते ही सारे कार्य कर जाते ,समस्त बुराईओं को हर लेते या गुंडों का सामना अकेले ही कर लेते या जादू की ताकत रखते हुए विजयी होते बच्चों के ज्यादातर एजुकेशनल प्रोग्राम ऐसे समय आते जब बच्चे घर पर होते ही नही, वे स्कूल, कॉलेज, या कोचिंग में व्यस्त होते है नकारात्मक उर्जा को उनकी कच्ची मिटटी से बने मन ऐसी पेंसिल ढूंढते जिस से लिखते ही या चित्र बनाते ही ऐसी कोई परी उनके सामने आये जो हर कदम पर उनकी रक्षा करे  इसी उधेड़बुन में डूबे बच्चे  प्रोग्राम के दौरान चलने वाले सभी विज्ञापनों को भी देखते है जो घर परिवार की मर्यादा  से परे होते है और बच्चे उम्र से पहले ही सब जान जाते है, यहीं से शुरू होता है भटकाव!

- अँधा फैशन
- पश्चिमी सभ्यता 
- नशे के खुले विज्ञापन ,भले ही उसके नीचे आते ज्ञान की दो लाइन जो इतनी बारीकी से लिखी  होती है, जिन पर ध्यान जाता ही नहीं।
इधर हर एकल परिवार में माता पिता चाहते है की उनका बच्चा क्लास वन  ही बने,उस से नीचे की बात करने को वो तैयार ही नहीं होते ।
तमाम कोचिंग सेण्टर की भीड़ इस बात का  प्रमाण है, की बच्चों की उनकी इच्छा अनुसार से ज्यादा मार मार कर वो विषय पढाया जाता  जो वे पढ़ना ही नहीं चाहते। यहाँ से शुरू होता है उनका मानसिक तनाव और असंतुष्ट  जीवन यदि वो इकलौता ही है तो वह मन किसके आगे खोले यहाँ जीवन में आते है वो नकरात्मक साधन जैसे सिगरेट, शराब या ड्रग्स। यदि अच्छी मिली संगती दोस्तीं की तो सही वर्ना संगत बिगड़ने के साथ साथ घर में झूठ बोलना भी शुरू हो जाता।

ऐसे भी परिवार होते है जहाँ बच्चों को करियर चुनने की छूट होती है। वहां बच्चे विज्ञापन से भर्मित होते है पर खुद के निर्णायक खुद बनाने के चक्कर में माता पिता के जीवन के अनुभवों को नकार जाते है वो फलां यूनिवर्सिटी (बिना रैंकिंग और मान्याता जाने) वहां जाना है, वहां के लिए इस फैशन ब्रांड से कम के कपडे नही चलेंगे ,क्योंकि वहां मेरे दोस्त जा रहे बस अब ये आपकी आर्थिक रुप से आप उपलबध करा सकते या नहीं इस से उनको कोई सरोकार नहीं होता, नहीं मिलने पर  घर से विद्रोह और विद्रोह में वो सब उपाय अपनाना जैसे घर से भाग जाना या। आत्महत्या तक कर जाना और यदि माता पिता उनकी जिद के आगे अपनी हैसियत से आगे झुक भी गए तो उनको इमोशनल ब्लैक मेल करना भी शामिल है, रात देर तक घूमना, पार्टी करना सामान्य दिनचर्या बन गया है और घर से बात छुपाना भी क्योंकि जनरेशन गैप है न, बड़े हमको कभी समझ ही नहीं सकेंगे उनका पूर्वाग्रह होता है। जिसमे होता कुछ हासिल नही। उनका खुद का स्वस्थ खराब और घर बर्बाद।

चारों और इस जकड़ी हुई क्लिष्ट संस्कृति और आधुनिकता की दौड़ में नशे की बढती प्रवृति के ये कुछ कारण मेरी नजर में है अब आते है इसको रोकें कैसे ?

- बच्चों को विश्वास में ले उनको विल पॉवर (आत्म विश्वास) की वैल्यू समझायें।
- आप कितने भी व्यस्त क्यों नहीं हो इन में 10 मिनिट का समय निकल उनके साथ बैठ कर उनका मन जरुर जाने  और उन्होंने   पूरा दिन कैसे बिताया ये जरुर सुने।
- उनकी संगत पर नजर रखें।
- उनकी शिक्षा और  उनके करियर को लेकर बहुत कड़ाई न करें।
- नियमित दिनचर्या हेतु प्रेरित करे उनको समझाएं रात देर तक घूमना या पार्टी करना ये सब अति से बचे घर से संभव न हो तो काउंसिलर की मदद ले।
- उनके शिक्षकों से समय समय पर मिले उनसे मार्ग दर्शन ले की उनका बच्चा किस विषय में अच्छा कर रहा है,उसका रुझान टीचर से जाने और सलाह ले की इस विषय पर आगे क्या करियर  बन सकता क्योंकि आज कल ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर आगे भविष्य न बनाया जा सके।

- ध्यान, योग और स्वास्थ की महता को समझाएं।
- नकारात्मक टी वी, फैशन की अंधी दौड़ और से बचाये।
- स्वाध्याय और डायरी  लेखन या अच्छे टी वी  चैनल  देखने हेतु प्रेरित  करें।
- यदि आपके परिवार में दादा दादी या नाना नानी जैसे बुजुर्ग मौजूद है। उनके सानिध्य में  कुछ समय जरुर  भेजें ।
- साल में एक बार भ्रमण या फॅमिली ट्रिप पर जरुर निकलें  नयी जगह देखने की रूचि और वहां की जानकारी से उनकी   दिमाग  में सकारात्मक उर्जा  भरेगी।

उपरोक्त करक और निदान के उपाय से यह विशालेष्त्मक परिणाम निकला जा सकता है कि इस प्रवृति  वृहद् पैमाने पर रोकने के लिए शुरुआत एक इकाई आपने परिवार या  आस  पास के उन घरों से करें जहाँ ये समस्या हो, एक  एक। कर ही समाज और समाज से देश बनता है अवश्य इस समस्या से  बाहर आने में मदद मिलेगी 

- अपराजिता शर्मा 
    रायपुर (छत्तीसगढ़)
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