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लिपि की समानता अधिकांश भाषाओं को सीखने में सहायक सिद्ध हो सकती है : गोपाल बघेल


नागपुर/पुणे। बहुभाषी और बहुलिपियों वाले भारत देश में वैकल्पिक लिपि के रूप में एक लिपि की समानता अधिकांश भाषाओं को सीखने  में सहायक सिद्ध हो सकती है और उस दृष्टि से समान लिपि के रूप में मात्र नागरी लिपि ही स्वीकार्य है। इस आशय का प्रतिपादन श्री गोपाल बघेल 'मधु',अध्यक्ष, अखिल विश्व हिंदी समिति, टोरंटो, कनाडा ने किया।नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली की कर्नाटक इकाई के तत्वाधान में शनिवार दिनांक 17 फरवरी, 2024 को 'दक्षिण भारत की भाषाएं और नागरी लिपि की संभावनाएं' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय आभासी शोध संगोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख,पुणे ने सगोष्ठी की अध्यक्षता की। श्री गोपाल बघेल ने कहा कि, मानव जीवन के साथ-साथ भाषा और लिपि का विकास हुआ। नागरी लिपि के प्रचार - प्रसार का आरंभ सही मायने में दक्षिण भारत से हुआ है। कनाडा में समस्त भारतीय भाषाएं प्रयोग में है। 

मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉ.पद्माप्रिया, अध्यक्ष, हिंदी विभाग,पांडिचेरी विश्वविद्यालय ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं में स्वर व व्यंजन समान हैं। मात्र लिखने की पद्धति अलग-अलग है। मुख्य वक्ता डॉ.सी.जे. प्रसन्न कुमारी, पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, सरकारी महिला महाविद्यालय, तिरुवनंतपुरम, केरल ने कहा कि देवनागरी की उत्तरी और दक्षिणी शैली मैं थोड़ा सा अंतर है।दक्षिण भारत की सभी भाषाओं का उद्धव द्रविड़ परिवार से हुआ है, परंतु नागरी लिपि दक्षिण की भाषाओं के लिए सक्षम है। मुख्य वक्ता डॉ. जे.विजया भारती,अध्यक्ष, हिंदी विभाग, आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश ने कहा कि दक्षिण भारत की भाषाएं द्रविड़ भाषा से उत्पन्न हुई पर लिपियां ब्राह्मी लिपि से ही विकसित हुई हैं।तेलुगू और हिंदी की वर्णमाला लगभग समान हैं। आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में कई बोलियां बोली जाती हैं, जिनके लिए देवनागरी का प्रयोग अत्यंत सुविधाजनक है।

विशिष्ट वक्ता डॉ. इसपाक अली, पूर्व प्राचार्य, लाल बहादुर शास्त्री शिक्षा महाविद्यालय, बेंगलुरु,कर्नाटक ने कहा कि नागरी का उद्गम ही दक्षिण भारत में हुआ है। क्योंकि नागरी लिपि के उद्भव के सर्वाधिक प्रमाण दक्षिण भारत में मिलते हैं। सातवीं- आठवीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी  तक शिलालेख नागरी में पाए गए हैं।13वीं शताब्दी में प्रादेशिक भाषाएं नागरी लिपि में लिखना शुरू हुई। राष्ट्रभाषा और नागरी लिपि के नाम की शुरुआत भी दक्षिण भारत से हुई है। नागरी लिपि में सारी क्षमताएं व्याप्त हैं। विशिष्ट अतिथि डॉ.हरि सिंह पाल, महामंत्री, नागरी लिपि परिषद ,नई दिल्ली तथा सदस्य,हिंदी सलाहकार समिति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने अपने वक्तव्य में कहा कि दक्षिण भारत में नागरी लिपि का प्रचार प्रसार जितना हुआ है, शायद ही कहीं और हुआ होगा। क्योंकि दक्षिण भारत की भाषाएं और लिपियां नागरी लिपि के निकट की हैं। नागरी लिपि परिषद के गठन के समय दक्षिण के अधिकांश महानुभाव संयोजक के रूप में जुड़े हुए थे। भाषा और लिपि के नाम पर संघर्ष नहीं होना चाहिए। 

डॉ.मलिक मोहम्मद, पूर्व अध्यक्ष, केरल,श्री सी.वी.चारी, पूर्व अध्यक्ष, हैदराबाद तथा सी.ए. मेनन, पूर्व महामंत्री आदि दक्षिण के महानुभावों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ,महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से उद्भूत है तथा समस्त लिपियां ब्राह्मी से निर्मित हैं। दक्षिण की भाषाओ पर संस्कृत का प्रभाव अत्यधिक होने के कारण उनमें निकटता है। पर लिपि भिन्नता के कारण दक्षिण की भाषाएं एक दूसरे से दूर हैं। यदि जोड़ या संपर्क लिपि के रूप में नागरी लिपि का प्रयोग दक्षिण भारत की भाषाएं सीखने में किया जाए तो दक्षिण की चारों भाषाओं में निकटता स्थापित होगी। भारत की ही नहीं, अपितु विश्व की किसी भी भाषा को अभिव्यक्त करने की क्षमता केवल देवनागरी में है। इस अवसर पर डॉ.मोहन बहुगुणा, नई दिल्ली तथा डॉ.राजलक्ष्मी कृष्णन ,चेन्नई ने अपने विचार संक्षेप में व्यक्त किये। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सुनील कुमार परीट, प्रभारी, कर्नाटक राज्य, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि दक्षिण भारत की भाषाओं के लिए नागरी लिपि में अपार संभावनाएं व्याप्त हैं।

संगोष्ठी का शुभारंभ डॉ. वसुधा कामत ,बैलहोंगल,कर्नाटक द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक, छत्तीसगढ़ में नागरी लिपि की उत्तम प्रचारक-प्रसारक तथा सह प्राध्यापक ,शिक्षा मनोविज्ञान,ग्रेसियस कॉलेज  ऑफ़ एजुकेशन ,अभनपुर, रायपुर छत्तीसगढ़ ने संगोष्ठी का सुंदर, सफल व शानदार संचालन एवं नियंत्रण किया। डॉ.मलकप्प अलियास महेश, बेंगलुरु,कर्नाटक ने आभार ज्ञापन किया। इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. डुंगरी शांति, ईटानगर, डॉ.अदिति सैकिया,डिब्रूगढ़,डॉ.वी.पी.फिलिप, श्री हरी राम पंसारी, भुवनेश्वर,श्री अरूण कुमार पासवान,कार्यालय मंत्री,नागरी लिपि, परिषद, सेतुरमण अनंत कृष्णन, चेन्नई, गयाबालाजी, चुंबले, हैदराबाद, अपराजिता शर्मा, रायपुर, डॉ.जयंतीलाल, बारीस, गुजरात, रजनी प्रभा, मुजफ्फरपुर, डॉ.प्रतिभा येरेकार, नांदेड़, डॉ. वी. वेंकटेश्वर राव, हैदराबाद, शशिबाला गुप्ता, बैंगलुरू ,डॉ रचना भाटिया, दिल्ली  डॉ. भगवती प्रसाद निदारिया, डॉ. सतीश चंद्र यादव, रामहित यादव, डॉ.रीना सिंह, डॉ पोपट कोटमें सहित लगभग 100 प्रतिभागी पटल पर जुड़े हुए थे।
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