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सारा जहाँ


लघु कथा…

वैसे भी आज रक्षाबंधन था, और पुर्णीमा का दिन होने के कारण, आज सुबहही मेरे बहन ने मुझे राखी बांधी । मैने भी पाच सौ रुपये थाली मे डाले, और कुछ छोटासा तोहफा भी बहन को दिया । हमारी भाई - बहन की हरदम की नोक -झोक हुयी ।गीफ्ट छोटा होने के कारण मेरी छोटी बहन रूठसी गयी। थोडासा उसे पैसे की अहमियत समझाकर थोडासा डांटकर, मै और मेरे  कुछ दोस्त शामके समय थोडासा घुमने चले गये। टहलते - टहलते हमे एक घरसे रोने की आवाज आयी। यह देख हम सब अचंबित होगये । और मन ही मन सोच मे पड गये । की आजके ‘रक्षाबंधन’ त्यौहार के दिन कौन सिसक - सिसक कर रो रहा है ? हमने सोचा, हमे जाके देखना चाहिये, इसालिये हमने भी उस रोने वाली आवाज की दिशामे जाने की कोशीश की - वहाँ जाके हमने देखा ,एक छोटेसे झोपडे में तो एक स्त्री सिसक सिसककर रो रही थी। हमने उसे पुछा "बहन आप क्यों रो रही हो ? क्या हुवा ? क्या परेशानी है आपको ? तो वो स्त्री बडी देर से हमसे बोली "आप लोगोंने मुझे बहन बोला है, इसलिये मुझे आपसे कह देना चाहीये। ऐसा बोलके वो स्त्री हमसे बोलने लगी " भाईसाहाब ! मेरे भैय्या परदेस मे रहते है। उनका नाम 'राज' है। वो अच्छीखासी नोकरी करते है ! मेरे पापाके गुजर जाने बाद, मेरे भैय्यानेही मुझे बचपन से संभाला,  मेरे भैय्या की मै बहूत लाडली थी। वैसे तो मेरा नाम ‘किशोरी’ है। लेकीन भैय्या मुझे प्यारसे श्यामा कहकर पुकारते थे । सबकुछ अच्छा था । मगर एक दिन ऐसा आया की, सबकुछ उलटा हो गया। मुझे एक फौजी से प्यार होगया। और भैय्या के मर्जीके खिलाफ हमारी शादीभी हुयी। 

शादी हुयी ये तो अच्छी बात हुयी, मगर मेरे भैय्या को मेरा बहूत घुस्सा आया, क्योंकी भैय्या का कहना था की, पहले तुम तुम्हारी पढ़ाई पुरी करो, सिखलो, अपने पैर पर खुद खडी हो जाओ, पर ऐसा मेरे से नही हो सका , और पढ़ाई अधुरीही छोडनी पडी थी। गलती तो हुयी थी मुझसे। मगर क्या करे ? मै भी समय के सहारे बहते चली गयी । लेकीन, जैसे मेरे भैय्या मेरी चिंता करते थे, वैसेही मेरे पतिभी फौजी होने के बावजूद मेरा बहूत ध्यान रखते थे । लेकीन शादी के उस दिन से मै मेरे भैय्या से दूर होगयी, मै प्यार के सायें मे तो थी, पर कुछ बडासा प्यार से शितल छाँव देने वाला वृक्ष मुझसे रूठके अलग हो गया । देखोना ! तकदीर भी देखो क्या क्या खेल खेलती है ! उधर मेरे पति युद्ध मे शहिद हो गये। उनकी शहादतको आज दो माह हो रहे है । मैने मेरे भैय्या को इसके बारे मे फोन किया था, मगर भैय्या फोन पर मिले नही। उनके ऑफीस मे मॅसेज तो छोडा था  मैने की, ‘भैय्या सबकुछ भुलकर मुझे मिलने आ जावो ! मुझे माफ कर दो !’ लेकीन आजतक भैय्याका कोयी मॅसेज या फोन नही आया और आज रक्षाबंधन है, इसलिये भैय्याकी बहुत याद आ रही है। ऐसा कहके वो स्त्री और जोरसे रोने लगी। हमे भी क्या करे कुछ समझमें नही आ रहा था। 

हमने उस स्त्री को कुछ दिलासा देने के लिये कहा की, बहन ! चिंता मत करो ! भगवान जरूर तुम्हारे भैय्या को लेके आयेंगे, बहनका प्यार जरूर खिंच के लायेगा उन्हे ! आपके भैय्या का फोन नं. दो, हम फोन करके देखते है उनको," ऐसा कहकर उस स्त्री से फोन नं. लेही रहे थे तो अचानक , वो स्त्री स्तब्ध सी हो गयी, और दरवाजेसे दूर शामके धुंदली सी प्रकाशमे एकटक देखने लगी ! शायद कोई साया झिलमिलाया था, उसने दूर से दिखने वाले उस दौडते चले आ रहे सायें के तरफ उंगली दिखा कर हमे बोली " वो मेरे भैय्या ! " वो मेरे भैय्या आ रहे है !" हमे लगा के उस स्त्री ने अपना मानसीक संतुलन खो दिया है ! ये देख हमारा हृदय भी द्रवित हो गया । तभी उस स्त्री ने दरवाजे के तरफ दौडे चले आ रहे भैय्या को देखा । और फुटफुट कर रोने लगी तभी ‘श्यामा ss ! श्यामा’ ss ! ऐसा भैय्या ने अपने बहन को आवाज लगाया। उस बहनने अपने दोनो हाथ उठा कर उसने अपने भैय्या के तरफ बढाये । हम सब देखतेही रहे ! हमभी सोच में पड़ गये और हमे लगा "क्या सचमुच भगवान की कृपा होगयी ? 

उतनेमे उस बहन के राजभैय्या ने अपने बहन को गले से लगाया, और कहा "अरे पगली ! तेरा मॅसेज ऑफीसमे मिलतेही मैने तय किया था की, आनेवाले रक्षाबंधन को मै तेरेपास जरूर आऊंगा, उसी समय मेरी पोस्टींग दुसरे ऑफीस तबादला हुआ वो समय मेरेलीये बहुत कठीण था ! उस समय मै नही आ सकता था । अभी बडी मुश्कील से ऑफीस से छुट्टी लेकर तेरे लिये राखी बंधवाने आया हूँ ! मांगो श्यामा ! आज सारा जहाँ मांग लो तुम्हारा राजभैय्या आया है। मांगो श्यामा ! क्या चाहिये ? वैसे भी सबकुछ जिसका चला गया हो, वो सारा जहाँ लेकर भी क्या करेगी ? वो बहन अपने आनंद भरी खुशीके आंसू भरी नैनों से अपने भैय्या को कहा। भैय्या ! आपही मेरे ‘सारा जहाँ’ हो। आंसू पोछकर फीर बोली, आपकी छाया से दूर नही रह सकती भैय्या ! ऐसा कहकर उस श्यामा बहनने राजभैय्या को राखी बांधी !  दोनो की आखों से प्यार उमड रहा था। आज दोनो भाई बहन को उनका ‘सारा जहाँ’ जो मिला था !

- डॉ.मिलिंद इंदूरकर ‘मनवा’

नागपुर, महाराष्ट्र
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