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वृद्धावस्था और अकेलापन बनेगी भीषण समस्या


समय- समय पर समाज में बदलाव होते रहता है और नई- नई समस्याएँ सामने आती रहती हैं. आगामी 25 वर्षों में हमारे सामने वृद्धावस्था और अकेलापन सबसे विकट भीषण सामाजिक समस्या होगी. इस समस्या के लक्षण अभी दिखाई दे रहे हैं और इसके वास्तविक परिणाम ढाई दशक के बाद आने आरम्भ होंगे. इस समस्या का मूल कारण हमारे "हम दो हमारे दो" नीति है जो कि जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक थी. कारण और परिणाम का चक्र चलते ही रहता है. परिवारों की आकृति छोटी होने के परिणाम स्वरूप अब आने वाले समय में क्षेत्रफल के अनुपात में जनसंख्या का आवास विरल होना आरम्भ हो गया है. उदाहरण के लिए किसी नगर में पहले एक हजार मकानों में दस हजार लोग रहते थे. अर्थात हर घर में 10 लोग रहते थे. वहाँ जनसंख्या कम करने के लिए परिवार नियोजन अपनाया गया. 

एक पीढ़ी बीतने पर हर घर में परिजनों की संख्या कम होकर प्रति घर 4 ही रह गई. अब हर परिवार से कमाने खाने के लिए बच्चे बाहर जाते ही हैं और बूढ़े घर मे रह जाते हैं. इन चार में से अब और लोग बाहर चले गए तो पूरे नगर में जमीन का विस्तार उतना ही है, परंतु हर परिवार से लोगों की संख्या अब 10 के बजाय 2-3 रह गई. यह स्थिति भारत के हर घर में हो रही है. हर घर से बच्चे विदेशों में या दूसरे शहरों में जाकर बस रहे हैं. फलस्वरूप लोगों की आपसी भौतिक दूरी बढ़ रही है. बहुत सारे बंगले, घर हैं परंतु उनमें सिर्फ बुजुर्ग दंपति ही रहते हैं. मध्य वर्ग में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. बड़ी- बड़ी कॉलोनियों के घरों में बूढ़े दंपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है. यह अभी शुरुआत है, अभी डरावनी स्थिति 25 सालों के बाद आएगी. हमारे पास पैसा और भौतिक सुविधाएँ होंगी, परंतु भले-बुरे समय में कोई जीवित मनुष्य साथी नहीं होगा. जो कुँवारे रह गए हैं उनकी स्थिति क्या होगी, यह सोचना बहुत निराशाजनक है. 

परंतु हमें इस दृश्य को देखकर रोना नहीं है, इस चुनौती का सामना करना होगा. इसके लिए बुजुर्गों के हर पल की खबर रहे, ऐसा सूचना तंत्र तैयार करना होगा. उनकी सुरक्षा, उनकी देखरेख के लिए नए उपाय, नए कानून, नई तकनीक तैयार करनी होगी. इनमें सबसे अच्छा उपाय होगा कि हम अब से ही ऐसी बस्तियाँ, अपार्टमेंट, सोसाइटी, सामूहिक निवास, आधुनिक वृद्धाश्रम या ओल्डएज क्लब, स्कीम, लेआउट आदि तैयार करें ताकि वृद्धावस्था में लोग अपने बच्चों के साथ न होने पर भी एक दूसरे को आवाज देकर बुला सकें, एक दूसरे से मिलकर रह सकें, बीमार या मृत्युशैया पर जाकर साथ दे सकें, अंतिम संस्कार कर सकें, दुख-सुख बांट सकें. म्रुत्यु और वृद्धावस्था आनी निश्चित हैं. हम अपने प्रयासों से इसका सामना करने को तैयार रहें.
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

- आर्य पं. राघवेन्द्र शास्त्री

   धर्मवेत्ता व वरिष्ठ पत्रकार
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