चेन्नई में 483वाँ नवीकरण पाठ्यक्रम का उद्घाटन समारोह संपन्न
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नागपुर/चेन्नई। केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा चेन्नई हिंदी प्रचारक संघ, चेन्नई के हिंदी प्रचारक/हिंदी अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए 5 मई से 17 मई.2025 तक ‘483वें नवीकरण पाठ्यक्रम’ का आयोजन किया गया है। जिसका उद्घाटन समारोह 5 मई को गुरुनानक महाविद्यालय वेलाचेरी, चेन्नई में संपन्न किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबूराव कुळकर्णी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डी बी एच पी एस, चेन्नई के प्रभारी कुलसाचिव डॉ. मंजुनाथ अंबिग, विशिष्ट अतिथि के रूप में गुरुनानक महाविद्यालय, चेन्नई के उप प्राचार्य डॉ. पी. वी. कुमारगुरु, सम्मानित अतिथि के रूप में भक्तवात्सलम, विद्याश्रम, कोत्तूर, चेन्नई की प्राचार्या डॉ. विजयालक्षी एन. तथा विशेष अथिति के रूप में चेन्नई हिंदी प्रचारक संघ के महासचिव श्री जे. अशोक कुमार जैन, गुरुनानक महाविद्यालय वेलाचेरी की डीन, अकादमी डॉ. स्वाति पालीवाल उपस्थित थे। इस अवसर पर पाठ्यक्रम के संयोजक केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे एवं पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक एवं डॉ. दीपेश व्यास मंच पर उपस्थित रहे। इस नवीकरण पाठ्यक्रम में कुल 47 (महिला- 44, पुरुष-03) के प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया।
सभी अतिथियों का माल्यार्पण एवं स्वागत क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे द्वारा किया गया। उसके बाद संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका "समन्वय दक्षिण" का लोकार्पण किया गया साथ ही डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन जी द्वारा अनूदित पुस्तक "महाभारत" का लोकार्पण किया गया। उपस्थित प्रतिभागियों ने अपनी जिज्ञासाएँ तथा इस नवीकरण से क्या अपेक्षाएँ हैं इस संबंध में बताया। जिसमें पुष्प लता जी ने व्याकरण में पढ़ने में तथा कबीर, रहीम के दोहे पढ़ने में कठिनाइयों को दूर करने के लिए कहा। द्वितीय प्रतिभागी विद्यावती ने वर्ण के उच्चारण एवं व्याकरण की कठिनाइयों के लिए कहा। लक्ष्मी जी ने रस, अलंकार, छंद पर चर्चा करने का आग्रह किया। अतिथि जे. अशोक कुमार जैन ने हिंदी की सेवा के लिए जो लोग काम कर रहे हैं उनको इस कार्यशाला से लाभ होगा ऐसी आशा की। डॉ. स्वाति पालीवाल ने कहा कि ने तमिलनाडु में हिंदी सीखना बहुत कठिन कार्य है इसलिए इस तरह के कार्यशालाओं से सभी को लाभ लेना चाहिए। उपस्थित प्रतिभागियों से अपेक्षा की कि बाहर की परेशानियों को छोड़कर तन मन से इस कार्यशाला का लाभ उठाएँ।
डॉ. विजयलक्ष्मी एन. ने कहा अन्य भाषाओं के साथ हिंदी को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। सभी भाषाएँ पढ़ने वाले बच्चे एक समान होते हैं। नई टेक्नोलॉजी के साथ लेकर अपने बच्चों को सिखाएँ जिससे वह जल्दी सीखेंगे तथा बच्चों में संस्कार देना हिंदी अध्यापक का प्रमुख कार्य है तथा भगवान ने इस जन्म में अगर शिक्षक बनाया है तो यह हमारे पूर्व जन्म का फल है ऐसा उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा। डॉ. पी सी कुमारगुरु ने कहा कि हिंदी का जितना दमन होगा वह उतनी उभरेगी। भारत में हजारों क्षेत्रीय भाषाएँ हैं लेकिन मातृभाषा का विरोध केवल मीडिया में होता है तथा नेताओं द्वारा किया जाता है। आम जनमानस में यह धारणा नहीं है और नई शिक्षा में जो त्रिभाषा का कॉन्सेप्ट आया है उसके द्वारा हिंदी और भी सुगरण होगी। मुख्य अतिथि डॉ. मंजूनाथ अंबिग ने कहा कि हर विषय को पढ़ने के लिए हमें खुद मेहनत करनी पड़ती है भाषा से जो प्रेम करता है वह उसकी हो जाती है। हिंदी का कहीं विरोध नहीं है। हिंदी हमारी भारत की मूल संवेदना को व्यक्त करने की भाषा है। इसमें नाटक और सिनेमा ने बहुत बड़ा योगदान दिया है।
ज्ञान का प्रयोग करके किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है तथा सभी से निवेदन किया कि सभी प्रतिभागी हिंदी की कार्यशाला का लाभ उठाएँ। अंत में क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर गंगाधर वानोडे ने कहा कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही करते हैं। सोच हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए तथा उन्होंने संस्थान का परिचय भी दिया एवं संस्थान के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण की जीवन पर भी प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ। फत्ताराम नायक ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दीपेश व्यास ने किया। संस्थान के साथी सजग तिवारी द्वारा सभी प्रतिभागियों का नामांकन किया। अंत में राष्ट्रगान के साथ उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ। भोजन अवकाश के बाद पूर्व-परीक्षण लिया गया तथा प्रतिभागियों से वार्तालाप किया गया।