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ऐसे भी वीर


बहुत वीर हो तुम, 
बामियान की बुद्ध मुर्तियां तोड़ दी,
अनेकानेक मंदिरों में मुर्तियों के 
सर तन से जुदा कर 
अपने पौरुष का परिचय दिया,
निःशस्त्र सैलानियों पर 
गोलियों का क़हर ढाया,
सिंदूर पोंछ दी नवविवाहिता की
सच बहुत बहादुर हो तुम!

क्या धर्म तुम्हारा इतना कमजोर है कि 
बेज़ुबान मुर्तियां तोड़ी जाएँ,
क्या धर्म तुम्हारे कच्छे तक सीमित है,
क्या पाशविकता धर्म है तुम्हारा?
ख़ून बहाते हो, लाशें बिछाते हो,
और इस तरहा इबादत करते हो,
सच में भाईजान, बहुत धार्मिक हो तुम।

जन्नते-कश्मीर में रहकर 
हूरों को तलाशते हो,
जहन्नुम की दुहाई देते हो,
सच बहुत वीर हो तुम।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
   नागपुर, महाराष्ट्र 
काव्य 4546471917019347485
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