इंसान खत्म होते हैं, विचार नहीं
https://www.zeromilepress.com/2025/05/blog-post_145.html
ये सोचते समझते
जिंदगी की रेस में
आदमी लास्ट लैप में पहुंचता है
विचार की उत्पत्ति,
विचार की महती,
विचार की गहराई,
विचार की कीमत,
ये वास्तव में सोचने की बात है
विचार कैसे टिकते है
विचारों का संग्रह कैसा होता है
इस की बैंक कैसे चलती है
ये अभी भी स्पष्ट नहीं है
शरीर नश्वर है।
उसका अंत निश्चित है।
लेकिन जो विचार
एक बार जन्म ले लेते हैं,
वो वक़्त की सीमाओं को
लांघ जाते हैं।
भगत सिंह चला गया,
पर उसकी आज़ादी की धुन
अब भी हमारी रगों में बहती है।
आज भी मेरा रंग दे बसंती चोला से
शरीर पर कांटे आते है
बुद्ध ने देह त्यागी,
पर करुणा और मध्यम मार्ग का विचार
आज भी दुनियाभर में जी रहा है।
कबीर नहीं रहे,
पर उनके दोहे
अब भी इंसान को
आईना दिखाते हैं।
विचार कभी मरते नहीं।
वे पुस्तकों में रहते हैं,
संवादों में पलते हैं,
और कभी किसी बालक के मन में
क्रांति की चिंगारी बनकर जाग उठते हैं।
इंसान का शरीर
तो महज़ एक माध्यम है,
असल अमरता
उसके विचारों में बसती है।
श्रीकृष्ण आज नहीं है
पर उन की गीता है
उन के विचार है
ऐसा कहते की अगर
हम उस फ्रीक्वेंसी को
फिर से जीवित कर सके
जिस में भगवान ने
गीता कथन करी थी
तो हो सकता की हम लोग
साक्षात् श्रीमुख से
उनके विचार सुन सके
क्यों कि शब्द की ध्वनि
कभी नष्ट नही होती
भले ही बहुत लो फ्रीक्वेंसी पर रहे
हो सकता है कि
ये किसी कल्पना का विलास ही हो
पर कितनी सुंदर कल्पना है
कितनी सुंदर संभावना है।
इंसान की सृजनता
उस के विचारों के द्वारा
उस के चित्रों द्वारा
उस की कविता द्वारा
जीवित रहती है
पर सब से अच्छी स्मृति रहती है
उस के अच्छे कर्म
उस ने किए हुए उपकार
उस ने कभी किसी पंछी को
पानी पिलाया हो
उस ने कभी किसी
बिछड़े बच्चे को अम्मा से मिलाया हो
उस ने कभी किसी
जख्मी जानवर की सेवा की हो
तो उस के चरित्र से
चंदन सी खुशबू आती है
जैसे चैतन्य महाप्रभु
जैसे ज्ञानेश्वर महाराज
जैसे नानक देव जी
आप को कोई
अलग इंसान बनने की
आवश्यकता नहीं है
आप जैसे है वैसे ही
कुछ अच्छा काम करते रहे
फिर देखिए कैसा चमत्कार घटता है
- राजेन्द्र चांदोरकर ‘अनिकेत’
नागपुर, महाराष्ट्र