दौलत की अहमियत
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पैसा क्या है? हाथ का मैल है? आज यहां तो कल वहां! आनी-जानी लक्ष्मी है! क्या रखा है इसमें? क्यों इसके पीछे भागना? इस तरह के जुमले अक्सर कहीं ना कहीं सुनने मिलते ही रहते हैं। पर इसकी अहमियत तो उनसे पूछिए जिन्होंने पूरी जिंदगी लगाकर बमुश्किल इसे पाया है या जिनके पास हमेशा इसका टोटा पड़ा रहता है। एक गीत सुना था बचपन में नानी-दादी के मुख से.. जन्म हुआ तो लकड़ी, बड़ा हुआ तो लकड़ी, स्कूल गया तो लकड़ी, शादी हुई तो लकड़ी, फिर अंत हुआ तो भी लकड़ी। सब जगह हुई जरूरत बस लकड़ी की..
भई देख तमाशा लकड़ी का., भई देख तमाशा लकड़ी का.. बस यही गीत सटीक फिट बैठता है. ‘दौलत की अहमियत’ पर।
जन्म से पहले अस्पताल की बुकिंग, लगातार 9 महीने का ट्रीटमेंट, फिर नर्सरी, कॉन्वेंट, अच्छे कोचिंग सेंटर, एडमिशन का डोनेशन व भारी- भरकम फीस, प्रतियोगी परीक्षाओं की फीस, फिर एक- मुश्त रिश्वत की रकम नौकरी या व्यवसाय आदि के लिए और फिर पूरे ताम-झाम व लाव-लश्कर के साथ शानदार वैवाहिक आयोजन! कहां से और कैसे होगा सब बगैर नगद- नारायण के?? एक अच्छा खासा जीवन बिताने के बाद आजकल तो आदमी मौत भी एक इवेंट की तरह चाहने लगा है! अब कहिए इतना सबकुछ फोकट में तो होने से रहा! एक बात अवश्य है कि पैसों की अहमियत के सामने आप इंसान की अहमियत कभी भी कम ना ऑंकें। मित्र, रिश्तेदार, पड़ोसी, छोटा- बड़ा कोई भी हो सबको अपना स्वाभिमान प्यारा होता है।
कम दौलत होने के कारण किसी को नीचा दिखाना सरासर नाइंसाफी है। किसी भी इंसान की मूलभूत आवश्यकता होती है ‘रोटी, कपड़ा और मकान’। शाश्वत सत्य तो ये है कि बगैर पैसे के ये जरूरतें भी पूरी नहीं हो सकतीं। दौलत कोई भी,किस तरह से,कितनी खर्च करे पर चाहिए तो है ही। बस आय-व्यय का एक संतुलन बना कर चलते रहिए। जितनी चादर उतना पैर पसारिए नहीं तो चादर ही बड़ी करने के जुगाड़ में सतत प्रयत्नशील रहिए।
- सुषमा अग्रवाल
नागपुर महाराष्ट्र