कर्तव्य
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नस॔ भागते हुए आयी और कहने लगी- सर आईसीयू के पेशंट को होश आ गया है। सिस्टर, आप चलिए, मै अभी आता हूँ, डॉ. कमलेश ने कहा. आईसीयू में पहुँच कर डॉ. मरीज का मुआयना करने लगे. जैसे ही जब उनकी नजर मरीज के चेहरे पर स्थित ठोड़ी के निशान पर पड़ी तो वह सहम सा गया. अचानक उसे अपने बचपन की एक घटना की याद आ गयी. जैसे कोई उससे कह रहा हो- ऐ छोकरे रूक, कहां भागे जा रहा है. तेरी थैली में क्या है? यह सुनकर दस बरस का कमलेश रूक गया और पिछे मुड़कर देखा तो एक लंबा चौड़ा पुलिस वाला खड़ा दिखाई दिया. उसके चेहरे पर गहरी ठोड़ी का निशान दिखाई दे रहा था.
साहब, मै अपने घर वालों के लिए फुटपाथ के स्टाॅल से खाना ले जा रहा हूँ. अभी मेरे बाबा ने दिलाया है।मेरी माॅ और छोटे भाई -बहन रेल्वे स्टेशन के प्लेटफाम॔ पर भूखे बैठे है. झूठ बोलता है, चल मेरे साथ, कहते हुए पुलिस कांस्टेबल कमलेश को लेकर रेल्वे पुलिस स्टेशन में आया। बच्चे को देखकर इंचार्ज दरोग़ा जो समाजसेवक मुली॔धरन के साथ बैठे थे. पूछने लगे- क्या बात है, कांस्टेबल रामलाल, किसे पकड लाए हो? साहाब, आज कल बच्चों के हाथों स्मगलिंग का गैरक़ानूनी धंधा जोरों पर चल रहा है। मुझे इस पर संदेह हुआ तो इसे लाया हूँ। दरोग़ा किंचित चिढ़ कर पूछने लगा- इसे देखकर ऐसा लगता है क्या, यह ऐसे धंधो मे शामिल होगा? फिर भी तेरी तसल्ली के लिए इसकी तलाशी ले लो - हूजूर, इसके पास से कुछ नहीं मिला, तो जाने दे इसे।
यह सब बाते सुन रहे समाजसेवक मुली॔धरन ने उस बच्चे को अपने पास बुलाया और उससे सारी जानकारी ली. बेटा तुम जाओ.मै तुम्हारे माॅ बाप से मिलने आऊंगा. मुली॔धरन ने उनकी ग़रीबी का दद॔ समझकर अपने आश्रम में न सिफ॔ रहने की जगह दी बल्कि बच्चों की पढ़ाई की भी व्यवस्था कर दी. डाॅ. कमलेश अपने यादों से बाहर आया तो उसे याद आया की वह अपने अस्पताल में है। पेशंट के स्वस्थ्य होने पर डॉ. कमलेश ने पूछा- आपने मुझे पहचाना क्या रामलाल जी? मैं वही बच्चा हूँ, जिसे आपने स्मगलिंग के संदेह में पुलिस थाना ले गये थे। अपने दिमाग पर ज़ोर देने पर रामलाल को सब याद आ गया। हां याद आया। पर उस वक्त मै अपनी ड्युटी कर रहा था। गंभीरता से डॉ. कमलेश ने पूछा- यदि आप मुझ पर इल्जाम लगा कर अपराधी बना देते, तो उस वक्त मेरा नन्हा जीवन तो बबा॔द हो जाता न? इस प्रश्न पर रामलाल ख़ामोश रहा। डॉ. कमलेश ने कहा-आपने अपनी ड्युटी निभायी और मैने अपना कर्तव्य निभाकर आपका जीवन बचाया है। यह सुनकर रामलाल के आंखों से आंसू निकल पड़े. शायद उसे ड्युटी और कर्तव्य में फ़रक समझ गया होगा।
- मोहम्मद जिलानी,
चंद्रपुर, महाराष्ट्र