देश भर के कलाकारों ने विविध भारतीय नृत्य रूपों का किया प्रदर्शन
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अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पर आरजेएस एवं हिंदी महिला समिति का कार्यक्रम संपन्न
नागपुर/नई दिल्ली। राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (RJS PBH) ने 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पर 349वां कार्यक्रम आयोजित किया। नागपुर की हिंदी महिला समिति के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में पद्मश्री पुरस्कार विजेता डॉ. कमलिनी और नलिनी अस्थाना सहित देश भर के कलाकारों ने विविध भारतीय नृत्य रूपों का प्रदर्शन और प्रतिभागियों के साथ हार्दिक बातचीत की, जिसमें नृत्य को कई लोगों के लिए एक गहन 'जीवन का तरीका' के रूप में दर्शाया गया।
RJS PBH के संस्थापक उदय कुमार मन्ना द्वारा आयोजित इस सत्र में आधुनिक बैले के प्रणेता जीन- जॉर्जेस नोवरे को श्रद्धांजलि दी गई। मन्ना ने प्राचीन भारतीय श्लोक, 'यतो हस्तः ततो दृष्टिः..' की व्याख्या करके एक विचारशील माहौल तैयार किया, जो हाथ के इशारों, दृष्टि, मन, भावना (भाव) और सौंदर्य सार (रस) को नृत्य के मूल के रूप में जोड़ता है।
हिंदी महिला समिति की अध्यक्षा रति चौबे ने इस गहराई को दोहराते हुए उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि भारतीय परंपरा में, भगवान शिव, जिन्हें नटराज के रूप में पूजा जाता है, को आदिम नर्तक माना जाता है। उनकी स्व-रचित कविता, 'नृत्य -गीत' ने नृत्य को एक आंतरिक जीवन शक्ति के रूप में चित्रित किया, जो जन्म से मौजूद है और मानवीय भावनाओं के पूरे स्पेक्ट्रम को व्यक्त करने में सक्षम है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए हिंदी महिला समिति की जनसंपर्क अधिकारी डा.कविता परिहार और वक्ता के रूप में कवयित्री व सेवानिवृत्त शिक्षिका मंगला गजानन भुसारी ने सकारात्मक मीडिया के मंच से जुड़कर गौरवान्वित महसूस किया और कहा कि आज सकारात्मकता की अत्यंत आवश्यकता है।
मुख्य वक्ता डॉ. संजीवनी चौधरी, एक अभिनेत्री, लेखिका और निर्देशक, जिनके अर्धनारीश्वर प्रदर्शन को दिखाया गया था, ने एक संदेश के माध्यम से व्यक्त किया कि नृत्य 'उनके अस्तित्व के हर रेशे में बसता है'।
मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना और पद्म श्री प्राप्तकर्ता, डॉ. कमलिनी और नलिनी अस्थाना ने नृत्य को उस भाषा के रूप में वर्णित किया जो शब्दों के विफल होने पर शुरू होती है, जो सुर (राग), लय, ताल, भाव (भावना), विचार और अभिव्यक्ति का संगम है। 'कला निराकार (रूपहीन) को साकार (रूप) देती है', उन्होंने समझाया, अमूर्त को मूर्त बनाने की इसकी शक्ति पर प्रकाश डाला। कला की अंतर्निहित सकारात्मकता पर जोर देते हुए - 'कला में.. कोई विनाश नहीं है, केवल सृजन ही सृजन है' उन्होंने कलात्मक अभ्यास को सत्य (सच्चाई) से जोड़ा और इसकी समावेशिता का उल्लेख किया, जो लिंग से परे है क्योंकि यह आत्मा से उत्पन्न होती है।
नृत्य का व्यक्तिगत प्रभाव प्रतिभागियों के साक्ष्यों के माध्यम से गूंज उठा। उभरती हुई भरतनाट्यम कलाकार याना सुरेश (प्रो. डॉ. के.जी. सुरेश की बेटी, जो कार्यक्रम के अनुसार RJS परिवार और निदेशक, इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली से जुड़े हैं) ने घोषणा की कि नृत्य केवल एक जुनून नहीं बल्कि जीवन का तरीका है।
श्रीमती रति चौबे के संयोजन में तैयार लगभग 21- 22 प्रस्तुतियों में सांची मंज़रे व याना सुरेश का भरतनाट्यम और कल्याणी का ओडिशी जैसे शास्त्रीय रूप, डा. संजीवनी चौधरी का अर्धनारीश्वर नृत्य जैसे शक्तिशाली चित्रण, किरन हटवार का असम का बिहू नृत्य, सिमरनजीत कौर का पंजाबी लोकनृत्य,
झूमा जाधव का बंगाली नृत्य धुनुची, मीना तिवारी का राधा -कृष्ण लीला, आस्था रमेश नायक का गुजराती गरबा, ममता शर्मा का राजस्थानी मरुरंग,रश्मी अवस्थी घूमर लोकनृत्य, गुंजन पंत का भोजपुरी नृत्य, सुनीता शर्मा का यूपी वाला ठुमका और अरशद खान का महाराष्ट्र की लावणी जैसे ऊर्जावान लोक नृत्य, कविता परिहार, कमल शर्मा का ब्रज क्षेत्र से अद्वितीय चरकुला नृत्य, रश्मि मिश्रा, किरन हटवार और मधुबाला श्रीवास्तव का बिहार का मधीहि नृत्य, शोभा इंगराडे, लक्ष्मी वर्मा का डांस दीवाने, भरतनाट्यम व कत्थक नृत्यांगना स्नेहल भूते की प्रस्तुति और राजेश्वरी का जीन जॉर्जेस नोवरे को श्रद्धांजलि अर्पित करने वाला एक समापन बैले भी शामिल था।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक सुनील कुमार सिंह ने एक संस्थागत दृष्टिकोण जोड़ा, जिसमें बताया गया कि ICCR सांस्कृतिक कूटनीति, कलाकारों को बढ़ावा देने और वैश्विक शांति और समझ को बढ़ावा देने के लिए नृत्य का उपयोग कैसे करता है।
कार्यक्रम ने अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस को न केवल प्रदर्शन के माध्यम से, बल्कि इसके गहरे महत्व के सार्थक अन्वेषण के माध्यम से सफलतापूर्वक मनाया, इस सार्वभौमिक कला रूप की सराहना में पूरे भारत की आवाज़ों को एकजुट किया।